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________________ भारत का भविष्य ज्यादा होती है, सुरक्षा ज्यादा होती है। अनजान अपरिचित रास्तों में जाने में भय लगता है, पता नहीं क्या हो जाए? आज है स्थिति बुरा न हो जाए। अनजान रास्ते पर आदमी डरता है। लेकिन ध्यान रहे, भविष्य सदा अनजान है और जीवन सदा अननोन, अज्ञात और अनजान की खोज। जो लोग ज्ञात, नोन, जाने-माने में ही भटकते हैं वे जीवन से संबंध तोड़ देते हैं और मृत्यु के साथी हो जाते हैं। नहीं, पीछे नहीं लौटना है। नहीं, राम-राज्य नहीं। चाहिए भविष्य का राज्य, अतीत का नहीं। और ध्यान रहे, अच्छे लोग हुए हैं अतीत में, लेकिन अच्छा समाज नहीं हुआ है। इस फर्क को समझ लेना जरूरी है। इससे बड़ी फैलेसी पैदा होती है, इससे बड़ा भ्रम पैदा होता है। आज से दो हजार साल बाद न तो मुझे कोई याद रखेगा, न आपको कोई याद रखेगा, लेकिन गांधी जी को दो हजार साल बाद भी लोग याद रखेंगे। दो हजार साल बाद लोग सोचेंगे जिस जमाने में गांधी हुआ उस जमाने के लोग कितने अच्छे रहे होंगे! जरूर सोचेंगे, गांधी याद रह जाएंगे, गांधी के आधार पर वे सोचेंगे कि दो हजार साल पहले गांधी जैसा अच्छा आदमी हुआ, तो जिन लोगों के बीच हुआ होगा वे लोग भी कितने अच्छे नहीं रहे होंगे! लेकिन उनकी धारणा बिलकुल गलत होगी, गांधी जरूर अच्छे थे, गांधी जिस समाज में पैदा हुए थे उस समाज से गांधी के अच्छे होने का क्या संबंध है? वह समाज तो अति कुरूप था, वह समाज तो अति दुगध से भरा था। वह समाज तो गोडसे का समाज हो सकता था गांधी का समाज नहीं हो सकता। गांधी इसके प्रतिनिधि नहीं थे, वे रिप्रेजेंटेटिव नहीं थे हमारे। वे एक्सेप्सन थे, वे अपवाद थे। हम, हमारे बाबत उनके द्वारा कोई भी निर्णय लिया जाएगा वह गलत होगा। लेकिन दो हजार साल बाद लोगों को हम याद नहीं रहेंगे, गांधी याद रहेंगे। यही पीछे के बाबत भी सच है। हमको राम याद हैं, लेकिन राम का समाज? हमें बुद्ध याद हैं, लेकिन बुद्ध का समाज? हमें महावीर याद हैं, लेकिन महावीर का समाज? हमें कृष्ण याद हैं, लेकिन कृष्ण का समाज? नहीं, राम से राम के समाज का अंदाज मत लगाना, भूल हो जाएगी। और यह मैं क्यों कहता हूं कि राम का समाज राम जैसा नहीं रहा होगा। मेरे ऊपर कई इलजाम लगाए अभी कि मैं इतिहास नहीं जानता हूं। मुझे जरूरत भी नहीं इतिहास जानने की। लेकिन जीवन के कुछ सत्य मुझे दिखाई पड़ते हैं। मुझे पता नहीं कि राम का समाज कैसा रहा होगा। लेकिन कुछ बातें मैं कहता हूं, एक बात यह कि अगर राम का समाज राम जैसा रहा होता तो राम की हमें याददाश्त भी न रह जाती। महापुरुष हमेशा छोटे पुरुषों के बीच में दिखाई पड़ते हैं, नहीं तो दिखाई भी नहीं पड़ सकते। अगर हिंदुस्तान में दस-पचास हजार गांधी हों, तो मोहनदास करमचंद गांधी को खोजना आसान होगा? कहीं भी खो जाएंगे भीड़ में, वे अकेले हैं इसलिए दिखाई पड़ते हैं। छोटे से स्कूल का शिक्षक भी जानता है कि सफेद खड़िया से सफेद दीवाल पर नहीं लिखना चाहिए। काले ब्लैकबोर्ड पर लिखता है सफेद खड़िया से। क्योंकि वह सफेद खड़िया ब्लैकबोर्ड पर दिखाई पड़ती है। जितना होता है काला बोर्ड, उतनी ही वह खड़िया ज्यादा सफेद दिखाई पड़ती है। राम जो इतने महान दिखाई पड़ते हैं, पीछे ब्लैकबोर्ड है समाज का। उसके बिना दिखाई नहीं पड़ सकते। मुझे इतिहास का कोई भी पता नहीं है, हो सकता है। कौन फिजूल की कहानी-किस्से पढ़े कि कौन बेवकूफ कब पैदा हुआ। कि वे कब जन्मे और कब मरे। मुझे नहीं पता होगा, लेकिन इतिहास को समझना और इतिहास को Page 87 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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