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________________ भारत का भविष्य जानना दो बातें हैं। महावीर और बुद्ध, ये दिखाई पड़ते हैं इसीलिए कि इनके आसपास जो समाज रहा होगा इनके प्रतिकूल विपरीत रहा होगा, और इनकी शिक्षाओं से भी सबूत मिलता है। महावीर क्या समझा रहे हैं लोगों को ? लोगों को समझा रहे हैं कि चोरी मत करो, बेईमानी मत करो, हिंसा मत करो, झूठ मत बोलो, दूसरे की स्त्री को बुरे भाव से मत देखो, ये समझा रहे हैं। समाज अच्छा था तो ये बातें समझाने की जरूरत थी? ये किसको समझा रहे हैं? ये किसको समझा रहे हैं? आपका दिमाग खराब है महावीर स्वामी! आप पागल हो! किसको समझा रहे हो ? जो लोग चोरी नहीं करते उनको सुबह से शाम तक यह क्या समझा रहे हो कि चोरी मत करो ? चोरों को ही समझाना पड़ता है कि चोरी मत करो! और हिंसकों को समझाना पड़ता है कि अहिंसा परम धर्म है ! और अधार्मिकों को धर्म की शिक्षा देनी पड़ती है । जिस दिन दुनिया धार्मिक होगी धर्म के शिक्षक को कोई जगह नहीं रह जाएगी। क्या जरूरत है? जिस गांव में सब लोग स्वस्थ होते हैं उसमें हर घर के बाद एक डाक्टर की, दवाखाने की जरूरत होगी ? क्या प्रयोजन है? लेकिन उनकी शिक्षाएं बताती हैं कि जिनको शिक्षाएं दी गई हैं वे शिक्षाओं से उलटे लोग रहे होंगे। पढ़ा एक गांव में, एक चर्च में एक फकीर को निमंत्रण दिया था लोगों ने बोलने के लिए कि आप बोलने आएं। वह फकीर बोलने गया। उन लोगों ने कहा कि सत्य के संबंध में हमें समझाइए | उस फकीर ने कहा, सत्य के संबंध में! लेकिन समझाने से पहले मैं एक बात पूछूंगा, चर्च के लोगों तुमसे मैं एक बात पूछता हूं। मेरा उत्तर दे दोगे तभी मैं समझाऊंगा। उस फकीर ने कहा कि तुमने बाइबिल जरूर पढ़ी होगी, बाइबिल में ल्यूग का उनहत्तरवां अध्याय है वह भी तुमने पढ़ा होगा, जिन लोगों ने ल्यूग का उनहत्तरवां अध्याय पढ़ा हो वह हाथ ऊपर उठा दें। सब लोगों ने हाथ उठा दिए, सिर्फ एक आदमी जो सामने बैठा था उसको छोड़ कर । उन सबने कहा कि हमने है। उस फकीर ने कहा, हाथ नीचे कर लें, अब मैं सत्य पर प्रवचन शुरू करता हूं। और तुम्हें बता देता हूं कि ल्यूग का उनहत्तरवां अध्याय जैसा कोई अध्याय ही बाइबिल में नहीं है । और आप सबने पढ़ा है ! वह है ही नहीं अध्याय वहां। उनहत्तरवां अध्याय है ही नहीं ल्यूग का कोई । अब मैं सत्य पर बोलना शुरू करता हूं क्योंकि पहले पता तो चल जाए कि कैसे लोग इकट्ठे हैं? अगर सभी लोग सत्य पर बोलते हों तो सत्य पर बोलना फिजूल है। अब ठीक वक्त, ठीक जगह तुमने मुझे बुला लिया। लेकिन उसने कहा कि मुझे बड़ा आश्चर्य है कि इस चर्च में एक सत्य बोलने वाला कैसे आ गया? क्योंकि चर्च की तरफ मंदिरों की तरफ सत्य बोलने वाले जाते ही नहीं। यह आदमी मेरे सामने बैठा है यह मिरेकल है, एक चमत्कार है यह आदमी हाथ नहीं उठाया । हे मेरे भाई! उसने उस आदमी से कहा कि तुमने हाथ क्यों नहीं उठाया? आश्चर्य! तुम इतने सत्यवादी हो । उस आदमी ने कहा कि महाशय, जरा जोर से बोलिए मुझे कम सुनाई पड़ता है। क्या आप यह कह रहे हैं कि उनहत्तरवां अध्याय ल्यूग का ? साहब रोज पढ़ता हूं, सुबह उसी का पाठ करता हूं। ये चर्च में इकट्ठे लोग हैं, यहां इनको सत्य की शिक्षा देनी पड़ती है। ये बुद्ध-महावीर सुबह से सांझ तक बेचारे सत्य की, अहिंसा की, प्रेम की चर्चा करते हैं । ये किन लोगों के सामने करते होंगे? इसी तरह इस चर्च जैसे लोग वहां इकट्ठे होंगे। नहीं, राम थे सुंदर, राम थे सत्य, लेकिन राम का समाज नहीं है । अगर समाज इतना सुंदर और सत्य होता, तो उस समाज से हम पैदा होते ! हम पैदा कहां से होते हैं? हम अपने अतीत से पैदा होते हैं । हम सबूत होते हैं Page 88 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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