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भारत का भविष्य
होगा भेड़ें थोड़े दिन में सफाचट हो जाएंगी। भेड़िये बिलकुल राजी हो जाएंगे कि हमें यह सर्वोदय की फिलासफी बिलकुल पसंद है। भेड़िये कहेंगे, हमें बिलकुल जंचता है, यह तत्व ज्ञान बहुत ऊंचा है। बिलकुल ठीक है। सबका उदय होना चाहिए, हमारा भी और भेड़ों का भी । क्योंकि वे भलीभांति जानते हैं कि दोनों के साथ रहने में बेचारी भेड़ों का उदय क्या हो सकता है ?
जब तक श्रेणी विभक्त है समाज, जब तक वर्ग विभक्त है, जब तक क्लासेज हैं समाज में, जब तक दो तरफ समाज का जीवन विभाजित है और जब तक शोषण का यंत्र काम करता है तब तक सर्वोदय जैसी कोई चीज कभी नहीं हो सकती। सर्वोदय हो सकता है जब श्रेणी विभक्त समाज समाप्त हो जाए। जब श्रेणी मुक्त समाज निर्मित हो, वर्गहीन समाज हो तो सबका उदय हो सकता है। क्योंकि तब सबका हित एक हो जाता है।
तो मैं कहता हूं, समाजवाद से सर्वोदय निष्पन्न होगा, लेकिन सर्वोदय से समाजवाद निष्पन्न नहीं हो सकता है। और सर्वोदय की बातचीत में हम जितना समय खराब करेंगे और जितनी शक्ति लगाएंगे, उतनी देर तक समाजवाद को लाने की दिशा में जो हमारे प्रयास होने चाहिए वे शिथिल पड़ते हैं और उनमें बाधा पड़ती है। इसलिए मैंने यह ठीक समझा कि हम गांधी के पूरी जीवन चिंतना पर, उनके जीवन भर के प्रयोगों पर एक बार फिर से विचार कर लें। क्योंकि उनके आधार पर हमें अपने मुल्क के भविष्य को एक दिशा, एक मार्ग, एक व्यवस्था देनी है। और गांधीवादी वह काम जरा भी नहीं कर रहे हैं। उनका एक ही काम है कि वे गांधी की जय-जय कार जोर-जोर से करवाते रहें ।
क्यों? क्योंकि गांधी की जय-जय कार में पीछे धीरे-धीरे उनकी भी जय-जय कार हो जाती है। जिस दिन गांधी की जय-जय कार बंद हो गई, उस दिन इन बेचारों की जय-जय कार करने वाला कहां खोजने से मिलेगा ! तो वे गांधी की जय-जय कार करते रहते हैं । आदमी बहुत होशियार है। आदमी को अगर यह भी कहना हो कि मैं कुछ हूं तो वह सीधा नहीं कहता, क्योंकि सीधे से बड़ी चोट पड़ती है । यह तरकीबें निकालता है। अगर गांधीवादी को यह कहना है कि मैं महान हूं, तो वह यह नहीं कहेगा कि मैं महान हूं। वह कहेगा, गांधी जी महान थे, गांधीवाद महान है। और धीरे से कहेगा, मैं गांधीवादी हूं! वह इतनी तरकीब लगानी पड़ती है । और विनम्रता से कहेगा कि मैं गांधीवादी हूं, मैं तो विनम्र आदमी हूं, मैं तो कुछ भी नहीं हूं। मगर गांधी महान थे, गांधीवाद महान है और मैं, मैं रहा छोटा सा एक सेवक।
मैंने सुना है कि पेरिस विश्वविद्यालय में फिलासफी का एक प्रोफेसर था, दर्शनशास्त्र का एक प्रधान अध्यापक। एक दिन सुबह आकर उसने यूनिवर्सिटी के विद्यार्थियों को अपने विभाग के विद्यार्थियों को कहा, तुम्हें पता है मैं दुनिया का सबसे श्रेष्ठ आदमी हूं।
वे लोग हैरान हुए, समझे कि दार्शनिक का दिमाग खराब हो गया। अक्सर हो जाता है। यह बेचारा गरीब
प्रोफेसर फटा कोट-कमीज पहने हुए यह, दुनिया का श्रेष्ठतम आदमी कैसे हो गया ?
उनकी आंखों में शक देख कर उसने कहा, तुम क्या शक करते हो इस बात पर ?
एक विद्यार्थी ने कहा कि महानुभाव, शक तो होता है आप कैसे दुनिया के श्रेष्ठतम आदमी हैं ?
उसने कहा, मैं सिद्ध कर सकता हूं।
उन विद्यार्थियों ने कहा, आप सिद्ध करेंगे तो बड़ी कृपा होगी।
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