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भारत का भविष्य
अगर गांधी जी वापस लौट कर आएं तो गांधीवादी उन्हें सूली लगा दें। अगर वे वापस लौट कर आएं तो देख कर हैरान हो जाएं कि ये उनके ही चरखा-तकली कातने वाले लोग, ये सत्य-अहिंसा की दुहाई देने वाले लोग, ये बड़े भले साधु-संत दिखाई पड़ते थे, ये बड़े भोले मालूम पड़ते थे, ये कैसे हो गए ? इनके चेहरों पर ये खून के दाग कैसे? इनके हाथ में यह अन्याय का रंग कैसा? इनका ये सारा व्यक्तित्व अंधेरा-अंधेरा कैसे हो गया? हां, खादी ये बहुत सफेद पहने हुए हैं। इतनी गांधी को भी सफेद खादी पहनने नहीं मिलती थी। लेकिन इस सफेद खादी के पीछे आदमी बिलकुल काले हो गए हैं। सच तो यह है, दुनिया का नियम यह है कि जितने काले आदमी होते हैं उतने सफेद कपड़े खोज लेते हैं। वह काले आदमी की पुरानी तरकीब यह है अपने कालिखपन को छिपाने की। खादी तो बुरी नहीं है, लेकिन गांधीवादी के हाथ में खादी तक बुरी हो गई है। गांधीवादी के हाथ में वह खादी तक अपमानित हो गई है, अपवित्र हो गई है। मैंने अभी बंबई में कहा कि खादी जैसी पवित्र चीज और गांधी जैसी सुंदर टोपी को भी, हो सकता है हिंदुस्तान को होली जलानी पड़े। क्योंकि वह अब सत्ता का प्रतीक और अन्याय का प्रतीक हो गई है। जैसे एक दिन अंग्रेजी कपड़ा, विलायती कपड़ा सत्ता का प्रतीक हो गया था। और गांधी को उसकी होली जला देनी पड़ी। दुर्भाग्य कहें, संयोग कहें, इतिहास का चमत्कार कहें कि उसी गांधी की टोपी आज उसी हालत पहुंच गई है जहां विदेशी कपड़ा पहुंच गया था। आज वह होली में जलाए जाने योग्य हो गई। नहीं मैं यह कह रहा हूं कि होली में जला दें। टोपी जलाने से कोई फायदा नहीं है। मुल्क का बेकार खर्च हो जाएगा। वह मैं नहीं कह रहा हूं, लेकिन मैं यह कह रहा हूं कि यह हालत कर दी है गांधीवादी ने। गांधी का कोई वाद नहीं है। गांधी का एक व्यक्तित्व था, गांधी की एक भावना थी, गांधी की एक आत्मा थी, उन्हें जो ठीक लगा उन्होंने किया। लेकिन गांधी ने कोई सूत्रबद्ध बाध्य नहीं दिया है जिसके कि पीछे चल कर पूरे मुल्क को बनाना है। नहीं, गांधी कोई सिस्टेमेटाइजर नहीं थे। गांधी ने कोई सिस्टम नहीं बनाई है। गांधी ने कोई रेखाबद्ध जीवन-दर्शन नहीं बनाया है कि इस ढांचे में तुम इस सारे मुल्क को बनाने की कोशिश करना। गांधी ढांचा विरोधी लोग थे, वे ढांचा नहीं बनाते हैं। जो ठीक लगता है वह जीते हैं, जो ठीक लगता है वह करते हैं। जो कल गलत लगता था आज ठीक लग रहा है, जो आज ठीक लगता है कल गलत लगेगा, तो वे ईमान से स्वीकार करते हैं कि वह गलत था मैं उसको छोड़ता है। अदभुत हिम्मत के आदमी थे। जीवन के अंत तक भी उन्होंने कोई ढांचा नहीं बना लिया था व्यक्तित्व का। एक स्वतंत्र व्यक्ति थे। लेकिन गांधीवादियों ने एक ढांचा बना दिया मल्क के लिए। और अब वह कहते हैं कि हम पूरे मुल्क को इस ढांचे में ढालेंगे। और उस ढांचे में पूरे मुल्क का अहित होने वाला है। क्योंकि गांधी ने जो विचार दिए वे आजादी के पूर्व थे। और आजादी के पूर्व आजादी का मसला दूसरा था। आजादी के बाद भारत की समस्या बुनियादी रूप से बदल गई है। और गांधी ने जो भी कहा और किया था आज उसकी कोई संगति नहीं रह गई है। गांधी के लिए सवाल था देश स्वतंत्र कैसे हो? अब हमारे लिए वह सवाल नहीं है। अब हमारे लिए सवाल है कि देश समान कैसे हो? स्वतंत्रता की जो लड़ाई थी उसमें और समानता की लड़ाई में बनियादी फर्क है। स्वतंत्रता की लड़ाई विदेशियों के खिलाफ थी। समानता की लड़ाई अपने ही उन लोगों के खिलाफ होगी, जो सत्ताधिकारी हैं,
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