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________________ भारत का भविष्य सोचता है कि सब बकवास है छोड़ो। वह अपनी, अपनी जिंदगी के जो थोड़े दिन बचे हैं उनको शांति और आनंद से और अपनी ही खोज में बिताना चाहता है। पुरानी पीढ़ी के बुद्धिमान को और नई पीढ़ी के बुद्धिमान को निकट लाया जा सकता है। बुद्धुओं को तो कहीं भी निकट नहीं लाया जा सकता, चाहे वे पुरानी पीढ़ी के हों और चाहे नई पीढ़ी के हों। उनको निकट लाने की जरूरत भी नहीं है, उनको निकट लाने का कोई प्रयोजन भी नहीं। यह जगत बहुत थोड़े से लोगों से संचालित होता है। यह मुश्किल से एक प्रतिशत आदमी है। वही यहां व्यवस्था करवाता है, वही उपद्रव भी करवाता है। मुश्किल से एक प्रतिशत आदमी है जो जिंदगी को सुख भी देता है और दुख से भी भर देता है। यह सारे लोगों का प्रश्न नहीं है। सारी भीड़ वह जो मॉसज है वह तो आमतौर से भेड़चाल होती है, वह तो भेड़ की तरह पीछे चलती रहती है। सिर्फ आगे की भेड़ को निकट लाने की जरूरत है। और यह बहुत बड़ा मसला नहीं है। यूनिवर्सिटी कैंप्स, शिक्षण संस्थाएं इन्हें निकट ला सकते हैं। इन्हें करीब रहने का मौका भी मिलना चाहिए। बूढ़े और बच्चे साथ रह सकें, साथ खेल सकें, पंद्रह दिन के लिए गपशप कर सकें, दोस्ती कर सकें। एक अमेरिकी बूढ़ी औरत ने सत्तर साल की बूढ़ी औरत, उसने एक छोटा सा प्रयोग किया है वह मैं आपसे कहना चाहता हूं। उसने एक चार साल के बच्चे से दोस्ती की। और उस चार साल के बच्चे के साथ दोस्त की तरह व्यवहार करने का तीन साल तक प्रयोग किया है। उसने अपने तीन साल के संस्मरण लिखे हैं वे बड़े अदभुत हैं। वह बच्चों को भी पढ़ाए जाने चाहिए और बूढ़ों को भी पढ़ाए जाने चाहिए। एक सत्तर साल की बूढ़ी औरत जब चार या पांच साल के बच्चे से दोस्ती करती है तो उसे पांच साल के बच्चे को समझना शुरू करना पड़ता है। पांच साल का बच्चा दो बजे रात उसे उठा लेता है और कहता है, चांद बाहर बहुत अच्छा है, बाहर चलें। दोस्त है, यह बूढ़ी उसकी मां नहीं है कि इंकार कर दे। दोस्त की बात माननी पड़ती है। वह बच्चा उसे दो बजे रात बाहर रोशनी में ले गया है। वह बच्चा उसे तितलियां पकड़ने के लिए दौड़वाता है। वह दोस्त है, उसकी मां नहीं है। वह बच्चा उसे नदी में तैरने के लिए ले जाता है, वह बच्चा उसे पक्षियों के गीत भी सुनने के लिए आतुर करता है। वह उस बच्चे के साथ नाचती भी है, कंकड़-पत्थर भी बिनती है, जाकर शंख-सीपी भी बिनती है। और तीन साल के अनुभव में उसने लिखा कि तीन साल उस बच्चे की दोस्ती ने उस बच्चे को क्या दिया वह मुझे पता नहीं, वह तो जब बच्चा लिखेगा अपने संस्मरण कभी तब पता चले, लेकिन मुझे जिंदगी दुबारा मिल गई, मैं फिर से जवान हो गई हूं, मैं फिर से बच्चा हो गई हूं। मैं अब फिर तितली में रंग देख पाती हूं। और अब मैं फिर नदी के किनारे पड़े कंकड़-पत्थरों में हीरे-मोती देख पाती है। और अब मैं फिर रात झींगुर की आवाज सुनने के लिए वृक्ष के पास रुक कर बैठ पाती हूं। उस बूढ़ी औरत ने लिखा है कि उस बच्चे ने जितना मुझे दिया उतना सत्तर साल की जिंदगी ने मुझे नहीं दिया था। उसके साथ दोस्ती बड़ी कीमती सिद्ध हुई। ऐसा नहीं है कि बच्चे को सिद्ध न होगी। क्योंकि जब बढी को बच्चे से मिलेगा तो बच्चे को बढी से भी मिलने वाला है। Page 70 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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