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भारत का भविष्य
एक घर में बच्चा अपने घर था, दूसरा बच्चा अपने घर में था। आज, आज लाखों बच्चे एक जगह इकट्ठे हो गए हैं। इसलिए सारी दुनिया में उपद्रव की जो जगह है वह यूनिवर्सिटी के कैंप्स बन गए हैं। चाहे फ्रांस हो, और चाहे जापान हो, और चाहे कलकत्ता हो, और चाहे बनारस हो। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता ।
सारी दुनिया में आज जहां नई और पुरानी पीढ़ी का फासला बहुत कस कर दिखाई पड़ता है वह यूनिवर्सिटी कैंप्स है। नई पीढ़ी बड़े पैमाने पर इकट्ठी है एक जगह और पुरानी पीढ़ी बिखरी हुई है वह इकट्ठी कहीं भी नहीं है। पुराने दिनों में पुरानी पीढ़ी की संस्थाएं थीं। मंदिर उनका था, पंचायत उनकी थी, गिरजा उनका था। नई पीढ़ी बिखरी हुई, थी पुरानी पीढ़ी इकट्ठी थी । आज बाप अकेला पड़ गया है और बेटे बहुत बड़ी संख्या में एक जगह इकट्ठे हो गए हैं। इसलिए बाप की पीढ़ी के लिए कोई भी उपाय नहीं रह गया है।
तो एक तो मेरा मानना है कि हर शिक्षण संस्था को, जिस तरह वह नई पीढ़ी को इकट्ठा करती है, इस तरह वर्ष में पंद्रह दिन महीने भर के लिए पुरानी पीढ़ी को भी नई पीढ़ी के साथ इकट्ठा करने के प्रयोग शुरू करने चाहिए। वह सेमीनार बड़े कीमत के सिद्ध हो सकते हैं। पुरानी और नई पीढ़ी को कहीं निकट लाने की कोशिश करने के हजार उपाय किए जा सकते हैं। लेकिन कहीं उन्हें निकट लाने के हमें उपाय करने चाहिए। मैं मानता हूं शिक्षण संस्थाएं ठीक जगह हैं जहां यह संभव हो सकता है। और नई और पुरानी पीढ़ी अपनी सारी तकलीफों को एक-दूसरे से कहें।
अभी क्या है, पुरानी पीढ़ी नई पीढ़ी को गाली देती रहती है घरों में बैठ कर । नई पीढ़ी पुरानी पीढ़ी को नासमझ समझ कर उपेक्षा करती रहती है। लेकिन दोनों की क्या आथेंटिक तकलीफें हैं। बाप की क्या मुसीबत और कठिनाई है, बेटे की क्या मुसीबत और कठिनाई है, इसको आमने-सामने एनकाउंटर नहीं हो पाता। तो एक तो फासले को कम करने के लिए निकट बातचीत आमने-सामने बिठाया जाना जरूरी है। राउंड टेबल कांफ्रेंसस, पुरानी और नई पीढ़ी के बीच यूनिवर्सिटीज, कालेजिज, स्कूलों में आयोजित करनी चाहिए। जहां श्रेष्ठतम नई पीढ़ी का व्यक्तित्व भी सामने आए और पुरानी पीढ़ी का भी श्रेष्ठतम आदमी सामने आए। जहां हम अपनी तकलीफें ईमानदारी से कह सकें।
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और ऐसा नहीं है। जैसा आपके प्रिंसिपल महोदय ने कहा । यह थोड़ी दूर तक सच है कि बूढ़े आदमी को राजी करना मुश्किल है, लेकिन सब बूढ़े ऐसे नहीं हैं। वे खुद भी वृद्ध हैं। और मैं समझता हूं उनको राजी किया जा सकता है। सभी बूढ़े बूढ़े नहीं हैं। वृद्ध पीढ़ी के पास भी एक हिस्सा है जो उसमें सबसे ज्यादा बुद्धिमान हिस्सा है वह सदा ही नई चीज के लिए राजी किया जा सकता है। नई पीढ़ी के पास भी सभी बच्चे नहीं; नई पीढ़ी के पास भी एक हिस्सा है जो उसका सबसे बुद्धिमान हिस्सा है जिसे पुरानी पीढ़ी के निकट लाया जा सकता है। और यह जगत और यह समाज, कोई लाखों लोगों से नहीं चलता, बहुत थोड़े से इंटेलिजेंसिया से चलता है। अगर पुरानी पीढ़ी की क्रीम और नई पीढ़ी की क्रीम निकट आ जाए तो हम फासले को कम कर सकते हैं। कोई हर आदमी को निकट लाने की जरूरत नहीं है। लेकिन क्रीम भी निकट नहीं आ पाती है। बल्कि क्रीम बिलकुल निकट नहीं आ पाती, जो नई पीढ़ी में बुद्धिमान और तेजस्वी लड़का है वह बगावती हो जाता है। वह तोड़फोड़ में लग जाता है। जो पुरानी पीढ़ी के पास बुद्धिमान आदमी है वह अक्सर रिननसिएसन में पड़ जाता है। वह
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