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________________ भारत का भविष्य एक सवाल पूछा गया है, और वह सवाल वही है जो आपके प्राचार्य महोदय ने भी कहा । सरल दिखाई पड़ती है सैद्धांतिक रूप से जो बात, उसको आचरण में लाने पर तत्काल कठिनाइयां शुरू हो जाती हैं। कठिनाइयां हैं, लेकिन असंभावनाएं नहीं हैं। डिफिकल्टीज हैं, इंपासिबिलिटीज नहीं हैं। कठिनाइयां तो होंगी ही क्योंकि सवाल बहुत बड़ा है। और अगर हम सोचते हों कि कोई ऐसा हल मिल जाएगा जिसमें कोई कठिनाई नहीं होगी, तो ऐसा हल कभी भी नहीं मिलेगा। कठिनाइयां हैं लेकिन कठिनाइयों से कोई सवाल हल होने से नहीं रुकता, जब तक कि असंभावनाएं न खड़ी हो जाएं। तो एक तो मैं यह कहना चाहता हूं कि कठिनाइयां निश्चित हैं। थोड़ी नहीं बहुत हैं । लेकिन हल की जा सकती हैं क्योंकि कठिनाइयां ही हैं और कठिनाइयां हल करने के लिए ही होती हैं। लेकिन अगर हम कठिनाइयों को गिनती करके बैठ जाएं, घबड़ा जाएं, तो फिर एक कदम आगे बढ़ना मुश्किल हो जाता है। मैंने सुना है कि एक आदमी एक पहाड़ की यात्रा पर निकला था। उसके पास एक छोटी सी लालटेन थी और रात थी अंधेरी । और लालटेन की रोशनी दो-तीन कदम से ज्यादा नहीं पड़ती थी। तो वह घबड़ा कर बैठ गया । पास से कोई दूसरा आदमी गुजरता था उसने कहा, तुम बैठ क्यों गए हो? उसने कहा कि मुझे चलना है कोई एक हजार मील और लालटेन की रोशनी है बहुत थोड़ी, दो कदम तक पड़ती है। तो मैंने हिसाब लगाया, मैं गणित का जानकार हूं। तो मैंने हिसाब लगाया कि दस हजार मील दूर तक फैला हुआ अंधेरा है और जरा सी लालटेन है, दो कदम तक रोशनी पड़ती है इससे पार नहीं हुआ जा सकता। इसलिए मैं बैठ गया हूं। तो उस दूसरे आदमी ने कहा कि माना मैंने कि तुम्हारा गणित ठीक है, लेकिन क्या तुम्हारे बैठ जाने से पार हो जाओगे ? उसने कहा, बैठ जाने से तो बिलकुल ही पार नहीं होऊंगा । तो उस दूसरे आदमी ने कहा, कम से कम दो कदम चलो, जितनी रोशनी है और भरोसा रखो कि जिस दीये से दो कदम तक रोशनी पड़ी; आगे दो कदम चलने पर फिर दो कदम तक रोशनी पड़ेगी। और तुम जितना चलोगे हमेशा दो कदम आगे तक रोशनी दिखाई पड़ती रहेगी। और दस हजार मील इकट्ठा तो कोई भी नहीं चलता है। आदमी चलता है एक बार एक ही कदम। तो अगर हम कठिनाइयों को इकट्ठा कर लें और कैलकुलेट कर लें तो बहुत मुश्किल में पड़ जाएंगे, कठिनाइयां बहुत हैं। लेकिन एक एक को हल करना शुरू करें तो वे हल हो सकती हैं। यह सवाल भी 'पूछा है कि नई और पुरानी पीढ़ियों के फासले को कैसे दूर किया जाए ? शिक्षण संस्थाएं क्या कर सकती हैं, यह भी पूछा है, इस संबंध में? तीन-चार प्रयोग जरूर किए जाने जैसे मुझे लगते हैं । संक्षिप्त में ही कह सकूंगा क्योंकि वह बात फिर पूरी बड़ी हो जाएगी। एक तो दुनिया में जवान सदा थे बूढ़े सदा थे, लेकिन नई पीढ़ी जैसी कोई चीज कभी न थी। उसका कारण था। न तो बड़ी यूनिवर्सिटीज थीं, न बड़े कालेजिज थे जहां नये बच्चों को हम इकट्ठा कर दें। Page 68 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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