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________________ भारत का भविष्य है। जिनके पास कोई तट भी नहीं है जहां टिक कर खड़ी हो जाएं। जो सिर्फ हवा के झोंकों में और पानी की लहरों में डोलती रहेंगी और नष्ट हो जाएंगी। भारत के सामने बहुत बड़े विचार की जरूरत है। भारत का पूरा अतीत समन्वित होना चाहिए और पश्चिम का समस्त शोध-विज्ञान समन्वित होना चाहिए। हमारे हृदय की सारी खोज और उनके तर्क की सारी प्रतिभा । अतीत पूरा और वर्तमान समग्र, अगर दोनों हम संयुक्त कर पाएं, संयुक्त कर सकते हैं, कोई कठिनाई नहीं; समझ के अतिरिक्त और कोई कठिनाई नहीं; एक अंडरस्टैंडिंग के अतिरिक्त और कोई कठिनाई नहीं। तो भारत एक बहुत ही नये फूल को जगत में खिला सकता है। और न केवल अपने लिए बल्कि सारे जगत के लिए एक सिंथेटिक कल्चर, एक संभवित संस्कृति का, एक संवेद संस्कृति का आदर्श बन सकता है। ये थोड़ी सी बातें मैंने कहीं । विस्तार की बात मैंने नहीं कही, डिटेल्स मैंने नहीं कहे । मैंने बहुत सूत्र की बात कही कि ये दो विकल्प हैं और दोनों विकल्प गलत हैं। और एक तीसरा विकल्प, एक थर्ड अल्टरनेटिव चुना जाना चाहिए। जिसमें हम हम भी होंगे और हम सारे जगत को भी अपने में समा लेंगे। तब भारत के पास एक शक्तिशाली, ऊर्जावान जीवंत संस्कृति का जन्म हो सकता है। लेकिन अगर हमने इन दो पीढ़ियों के बीच की खाई पूरी नहीं की, तो भारत किस ओर ? तो सिवाय मरघट के तीर और कहीं नहीं जाता हुआ दिखाई पड़ेगा। भारत मर सकता है अगर जिद की पुराना रहने की, अगर जिद की बिलकुल नया हो जाने की तो भारत मर सकता है। अगर लंगड़े और अंधे ने सहयोग न किया, अगर पुरानी और नई पीढ़ी एक-दूसरे के कंधे पर न बैठी तो भारत मर सकता है। भारत को अगर जीवंत भविष्य देना है तो एक समन्वित संस्करण, एक समन्वित सिंथेटिक कल्चर की जरूरत है। ये थोड़ी सी बातें मैंने कहीं। मेरी बातें माननी जरूरी नहीं हैं, मैं कोई उपदेशक नहीं हूं। मेरी बातें सुनी यह बड़ी कृपा। इन पर सोच लेंगे तो पर्याप्त । सोचना, मेरी बातें गलत हो सकती हैं, क्योंकि किसी आदमी को इस भ्रम में होने की जरूरत नहीं है कि उसकी सभी बातें सही हों । यह भी पुराने आदमी का पागलपन था । कोई सर्वज्ञ नहीं है। हो भी नहीं सकता है । होने का खयाल सिर्फ विक्षिप्तता है। तो मैंने जो कहा जैसा मुझे दिखाई पड़ता है । लेकिन मुझे जो दिखाई पड़ता है हो सकता है आपको दिखाई न भी पड़े। सिर्फ मेरे साथ देखने की कोशिश करना, हो सकता है उसमें से कुछ आपको भी दिखाई पड़े। और जो आपको भी दिखाई पड़ जाए वह सत्य आपके जीवन को रूपांतरित करने का कारण बन जाता है। और आप तो आने वाली पीढ़ी हैं अगर इसमें से कुछ भी सत्य आपको दिखाई पड़ सके और भारत के अतीत को जमीन बना कर, जगत के वर्तमान को बीज बना कर अगर हम इस देश के भविष्य के फूल खिला सकें, तो यह देश बहुत दिन से दीन-दरिद्र, दुखी और पीड़ित है । इस देश में भी स्वर्ग का आगमन सकता है। मेरी बातों को इतने प्रेम और शांति से सुना, उससे बहुत अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं, मेरे प्रणाम स्वीकार करें। Page 67 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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