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भारत का भविष्य
वर्षा में खराब नहीं होगी, क्योंकि उसका रोगन भीतर है। और इस माचिस को अलग से जलाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। माचिस जली हुई बाहर निकलेगी । निश्चित ही इसकी माचिस को जल्दी ही कोई बड़ा ग्राहक मिल
जाएगा।
उस लड़के को मैंने कहा कि तू फिक्र में लगा रहे, जो तेरे घर में है उसी का तू उपयोग कर। अभी उसने एक स्टोव बना कर ले आया है। अब घर में सबके स्टोव है। यह सवाल नहीं है कि इंप्लाइमेंट हो, यह सवाल नहीं कि नौकरी हो, यह सवाल है बुद्धि का, यह सवाल है प्रतिभा का । अगर आपके पास प्रतिभा है तो आप रेत से तेल निकाल सकेंगे। अगर आप के पास प्रतिभा है तो पत्थर सोना हो जाएगा। और अगर आप के पास प्रतिभा नहीं है तो सोना भी मिट्टी हो जाता है।
एप्रोच बदलने के लिए कह रहा हूं मैं । यह नहीं कह रहा हूं कि आपको इंप्लाइमेंट न मिले। मैं यह नहीं कह रहा हूं, मैं यह कह रहा हूं इंप्लाइमेंट तो मिलना ही चाहिए। लेकिन सबको मिल सकता नहीं। उसका कोई उपाय नहीं है।
एप्रोच आपकी बदलनी चाहिए जिंदगी को सोचने के संबंध में। आप कपड़ा तो पहने हुए हैं, अभी जो युवक आए वे कपड़ा तो पहने हुए हैं, कपड़े के संबंध में कुछ फिक्र कर सकते हैं। खाना तो खाते हैं, खाने के संबंध में कुछ फिक्र कर सकते हैं। पेशाब तो करते हैं, इस पेशाब का कोई उपयोग खोज सकते हैं। बाल तो कटवाते हैं जाकर नाई से, कटे हुए बालों की खाद बन सकती है। कुछ उपाय खोज सकते हैं। जिंदगी में आप कुछ तो कर ही रहे होंगे, वहां कुछ और क्या हो सकता है इसकी दिशा में अगर आंखें गड़ी रहें तो आदमी जरूर बहुत कुछ खोज लेता है। लेकिन आंखें गड़ी न हों तो कुछ भी नहीं खोज पाता । और जिन मुल्कों में खोज की दृष्टि...
मैं एक सफर में था और एक जापानी बुढ़िया मेरे साथ बैठी हुई थी। मूंगफली उसने खरीदी हुई थी। वह मूंगफली खाती जा रही थी और छिलके अपने बैग में रखती जा रही थी । मैं थोड़ी देर में हैरान हो गया! क्योंकि मूंगफली के छिलके बैग में किसलिए रख रही ? शायद, मैंने सोचा कि वह गंदगी नहीं करना चाहती। लेकिन वह छिलकों को इतने साफ करके बैग में रख रही थी कि मुझे शक हुआ। मैंने उससे पूछा, ये छिलके किसलिए रख रही ? उसने कहा कि इनको रंग कर खिलौने बनाए जा सकते हैं।
अब जापान में हर आदमी हर चीज का उपयोग करने की फिक्र करेगा । जापान में कचरे में बहुत कम चीजें फेंकी जाएंगी। क्योंकि कचरा भी बहुत काम में आ सकता है। हिंदुस्तान की सड़कें कचरे से भरी हुई हैं। अगर बुद्धि हो तो तो यह सारा कचरा सोना बन जाए। हम इतनी चीजें फेंक रहे हैं जिनका कोई हिसाब नहीं। ये सारी चीजें रूपांतरित हो सकती हैं। सवाल दृष्टि का है। लेकिन हमारी दृष्टि तो एक है कि कोई और इंप्लाइमेंट दे। पहले हम भगवान से मांगते थे कि भगवान दे, अब हम सरकार से मांगते हैं कि सरकार दे। भगवान तो फिर भी ताकतवर है, सरकार तो बहुत नपुंसक है, इंपोटेंट है, वह तो कुछ भी नहीं कर सकती। भगवान से ही मांगते रहते वह भी ठीक था। लेकिन यह सरकार से मांगने से नहीं चलेगा।
सारा मुल्क मांग रहा है कि हमें मिलना चाहिए । लेकिन देने वाला कौन है? नहीं, मुल्क में कुछ जवानों को हिम्मत करनी चाहिए कि हम देंगे और अनकंडीशनल देंगे, कोई शर्त नहीं रखते। भूखे पेट होंगे तो भी खोजेंगे।
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