SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 53
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारत का भविष्य खोजें भूखे लोगों ने की हैं। और जैसे ही उनके पेट भर दिए जाते हैं, करीब-करीब उनकी खोजें भी मर जाती हैं। क्योंकि जैसे ही वे आराम में हो जाते हैं वैसे ही खोज की दिशा भी खो जाती है। मैं नहीं मानता हूं कि हिंदुस्तान को खोज में कोई कमी है क्योंकि हिंदुस्तान बहुत भूखा है। अगर इतनी भूख और इतनी परेशानी भी खोज की प्रेरणा नहीं बनती है, तो मैं नहीं मानता हूं कि अमेरिका जैसे हम संपन्न हो जाएं तो हम कुछ भी खोज करेंगे। जब घर में आग लगी हो तब भी कोई बाहर निकलने को तैयार नहीं है, तो जब घर में आग नहीं लगी होगी तो आप घर के भीतर सोए होंगे, इसकी आशा की जा सकती है, बाहर आप कभी भी नहीं निकलेंगे। इतनी परेशानियों के दबाव में भी हिंदुस्तान के युवक के मन में नई दिशा का खयाल नहीं है। लेकिन यह खयाल आ सकता है। मैं ठीक ऐसी ही बात एक कालेज में बोल रहा था। साल भर बाद दुबारा उस कालेज में गया, तो एक युवक ने मुझे लाकर एक साइकिल के चक्के का नक्शा बताया। उसने कहा, पिछली बार आप बोले थे, तो मेरे मन में आया कि मैं कुछ खोजूं। मेरे पास कुछ भी नहीं, लेकिन एक टूटी-फूटी साइकिल तो है ही मेरे पास, जिस पर मैं कालेज आता हूं। तो मैंने कहा कि मैं साइकिल के संबंध में कुछ खोज करूं। इसमें तो कोई बहुत बड़ा काम नहीं। इस पर रोज सवार भी होता हूं, इसको ठोंक-पीट कर रोज ठीक भी करता हूं, पुरानी टूटी-फूटी साइकिल है। इसमें कि मैं क्या कर सकता हूं? आपने मुझे खयाल दिया तो मैं अपनी साइकिल के बाबत सोचने लगा। और मुझे एक खयाल आया कि आदमी साइकिल पर बैठता है तो उसका वजन पड़ता है, इसके वजन का उपयोग साइकिल के चलाने में किया जा सकता है या नहीं किया जा सकता? वह उस खोज के पीछे पड़ गया। अब जब मैं दुबारा गया तो उसने मुझे चक्का लाकर बतलाया जो कि आदमी के वजन का उपयोग करेगा साइकिल की गति में। अभी जितना मोटा आदमी हो उतना साइकिल चलाने में मुश्किल होती है। उसकी साइकिल पर जितना मोटा आदमी हो उतनी सुविधा होगी। उसने साइकिल के टायर में कई हिस्से कर दिए हैं और साइकिल के ट्यूब को आठ-दस हिस्सों में तोड़ दिया है। तो जब एक आदमी साइकिल पर सवार होता है तो नीचे का जो टुकड़ा है रबड़ का, हवा का जो दबाव है वह पड़ता है उस पर। उस दबाव के, हवा के दबाव की वजह से दूसरी हवा उसमें प्रवेश करना चाहती है और साइकिल की गति बढ़ जाती है। जितना वजनी आदमी उतनी साइकिल गतिमान हो जाएगी। और साधारणतया जितनी हम साइकिल चलाते हैं उसमें आधी ताकत की जरूरत रहेगी, आधी ताकत शरीर से लग जाएगी, वजन से...। अब इस लड़के के पास कुछ भी नहीं है, कोई एंप्लाइमेंट नहीं है। मैंने उस लड़के को कहा कि तू और भी फिक्र कर, तेरे पास जो भी हो उसमें फिक्र कर। अभी वह मेरे पास एक माचिस लेकर आया था। जो माचिस उसने और ढंग से बनाई है। माचिस की काड़ी हमें जलानी पड़ती है। अब यह गरीब लड़का है। लेकिन माचिस किसके घर में नहीं है! लेकिन अकल चाहिए, थोड़ी बुद्धि चाहिए, थोड़ी खोज की वृत्ति चाहिए। वह एक नई माचिस बना कर लाया था जो कि बहुत कीमती है। वह माचिस ऐसी है कि उसमें काड़ी को अलग से जलाने की जरूरत नहीं। आप काड़ी को खींचिए, वह जली हुई बाहर निकलती है। क्योंकि काड़ी की माचिस के भीतर उसने रोगन लगा दिया है और काड़ी बीच में दबी है। माचिस खींचिए, वह जली हुई बाहर निकलती है। यह माचिस Page 53 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy