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________________ भारत का भविष्य शिक्षित कर लिया है उतना भी काम नहीं है और जितने लोगों को हम शिक्षित कर रहे हैं उनके लिए भविष्य में कोई काम नहीं होगा। लेकिन यह मजबूरी है और यह हम सबकी मजबूरी है। अगर इसको हमने जल्दबाजी की तो शायद जितना काम मिल सकता है वह भी न मिल पाए। और अगर हम धैर्य से प्रयोग करें तो शायद हम मार्ग नये कामों की दिशाओं को खोजने में समर्थ हो सकते हैं। असल में हिंदुस्तान के जवान को पुराने किस्म के काम मांगने की बात छोड़ देनी चाहिए, अगर हिंदुस्तान की समस्याओं को हल करना हो। हिंदुस्तान के जवान को अपनी जवानी का बड़े से बड़ा प्रयोग हिंदुस्तान में नये काम पैदा करने में दिखाना चाहिए। उसे पुराने ढंग के काम मांगना बंद कर देना चाहिए। जैसे कि हम एक कवि को ओरिजिनल कहते हैं अगर वह नई कविता लिखे। अगर वह कालिदास जैसी कविता लिखे तो उसको कोई कवि नहीं मानता। और अगर वह शेक्सपियर जैसी कविता कितनी ही अच्छी लिख ले तब भी हम कहेंगे चोर है। कोई मौलिक नहीं, कोई ओरिजिनल नहीं । जैसे कविता भी नई करता है आदमी, जैसे लेख भी नया लिखता है, विज्ञान में नई खोज करता है, वैसे हिंदुस्तान के जवान को नये काम की खोज पर निकलना पड़ेगा। हजार तरह के नये काम खोजे जा सकते हैं। लेकिन हिंदुस्तान के सब जवान पुराने दरवाजों पर दस्तक दे रहे हैं। उन पुराने दरवाजों से काम चुक गए हैं। सच तो यह है कि पुराने दफ्तरों में जरूरत से ज्यादा आदमी हैं। और ध्यान रहे, जहां दो आदमी काम कर सकते हैं अगर वहां छह आदमी हो गए, तो जो काम दो आदमी करते थे वे छह आदमी और बिगाड़ देंगे, वे छह नहीं कर पाएंगे। हिंदुस्तान में मजबूरी यह है कि हर जगह ज्यादा आदमी हैं। और जहां भी जरूरत से ज्यादा आदमी होते हैं वहां इफिशिएंसी कम हो जाती है, वहां कुशलता कम हो जाती है । अंग्रेज जिन दफ्तरों में एक क्लर्क से काम चला रहे थे वहां आज दस क्लर्क हैं। और अंग्रेज का एक क्लर्क जितना काम कर रहा था उतने दस क्लर्क नहीं कर रहे हैं। असल में दस क्लर्क कर ही नहीं सकते उतना काम । एक जितना काम कर सकता है वह दस नहीं कर सकते। अगर एक के लायक ही काम है तो दस सिर्फ उसको बिगाड़ने वाले सिद्ध होंगे और इस तरह काम को फैलाएंगे कि वह दस के योग्य मालूम होने लगेगा । और काम इस भांति फैलता हुआ दिखाई पड़ेगा, लेकिन होता हुआ दिखाई नहीं पड़ेगा। हिंदुस्तान की पूरी नौकरशाही काम को फैलाने का काम कर रही है, काम को हल करने का काम नहीं कर रही । क्योंकि काम जितना फैलता है उतनी जगह बनती है। लेकिन यह जगह बोगस, इनसे कोई मुल्क को उत्पादन और मुल्क को नई दिशाएं नहीं मिलतीं। लेकिन क्या वजह है कि हिंदुस्तान में हम नये काम न खोज सकें? कितने नये काम अधूरे पड़े हैं जो हमें पुकारते हैं। लेकिन जैसा मैंने कहा, हमारी पुरानी आदतें दिक्कत देती हैं। अब हिंदुस्तान में कितने इंजीनियर हैं जो बेकार हैं। लेकिन कोई इंजीनियर इसकी फिक्र नहीं करता कि जमीन के नीचे मकान बनाने के लिए नई योजनाएं दें। कोई इंजीनियर इस बात की फिक्र नहीं करता कि समुद्र पर मकान बनाएं। अब यह जान कर आपको हैरानी होगी कि अभी एक अमेरिकन इंजीनियर सुलर ने समुद्र पर मकान बनाने का बहुत सस्ता सुझाव दिया है। योजना भी दी है, मकान का माडल भी दिया है। सीमेंट-कांक्रीट के मकान, जिनमें एक मकान में बीस हजार आदमी रह सकें, समुद्र पर तैर सकते हैं, डूबेंगे नहीं, क्योंकि वे चारों तरफ से बंद होंगे। उनके भीतर हवा का जितना वाल्यूम होगा वही उनको समुद्र के ऊपर Page 43 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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