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________________ भारत का भविष्य तैराने का कारण बन जाएगा। वे जमीन पर बनने वाले मकानों से सस्ते होंगे और जमीन को घेरेंगे नहीं। और हिंदुस्तान को तो जमीन की जरूरत है। हिंदुस्तान पर जमीन जितनी घिर जाएगी उतना भोजन मुश्किल में पड़ जाएगा। हिंदुस्तान के इंजीनियर को फिक्र करनी चाहिए कि पानी पर मकान बनाए। हवा में भी मकान बनाए जा सकते हैं। एक दूसरे ब्रिटिश इंजीनियर ने हवा में मकान बनाने का माडल दिया। लेकिन हिंदुस्तान के बच्चे कब इस दिशाओं में सोचेंगे? सीमेंट-कांक्रीट का मकान हवा में भी हवा के वाल्यूम के आधार पर तैर सकता है, उड़ सकता है। और वह जमीन पर बनाए हुए मकान से सस्ता मकान सिद्ध होगा। लेकिन हिंदुस्तान का इंजीनियर जमीन पर ही मकान बनाता चला जाएगा। मकान भी वह उस ढंग से बना रहा है जिस ढंग से पांच हजार साल पहले हमारे बाप-दादा ही बनाते थे। अब किसी को इट बनाने की जरूरत नहीं होनी चाहिए। इट तब बनती थी जब हम पूरी दीवाल सीधी नहीं बना सकते थे। अब हम पहले इट बनाएंगे, फिर इट को हम जोड़ेंगे, फिर आखिर दीवाल बनाएंगे। अब तो दीवाल सीधी बन सकती है। अब इतनी मोटी दीवालों की भी जरूरत नहीं है। अब हम बहुत और ढंग से जिंदगी को जीने की व्यवस्था करने की खोज कर सकते हैं। अब जो इंजीनियर जमीन पर छोड़ कर हवा में या पानी में मकान बनाएगा उसके लिए काम नहीं होगा? उसके लिए खुद तो काम होगा, वह अपने जैसे हजारों इंजीनियरों के लिए नये काम की दिशा खोल देगा। लेकिन नहीं, वह इंजीनियर अपनी दरख्वास्त लिए खड़ा हुआ है पी.डब्लयु.डी. के दफ्तर के सामने कि हमको नौकरी चाहिए। नहीं, हिंदुस्तान का जवान अपने को जवान सिद्ध नहीं कर रहा। जवानी का पहला लक्षण यह है कि वह मौलिक खोजें करें। उसे जानना चाहिए कि उसके माता-पिताओं ने उसे जहां पहुंचा दिया है वहां उनकी सामर्थ्य चुक गई है। सैचरेसन आ गया है, चीजें चक गई हैं, उसके आगे अब चीजें नहीं जा सकती हैं। हमेशा जिंदगी में जवानों को नई चीजें खोजनी पड़ती हैं। हिंदुस्तान के सामने बड़ी से बड़ी समस्या यह है कि हम नई दिशाएं कैसे तोड़ें? नई दिशाएं तोड़ी जा सकती हैं। कोई कारण नहीं है। जमीन के नीचे मकान बन सकते हैं। और जब से एयरकंडीशनिंग की सुविधा हो गई, तब से हम जमीन के नीचे बहुत मकान फैला सकते हैं। असल में हिंदुस्तान में अब कोई फैक्ट्री जमीन के ऊपर नहीं बननी चाहिए। क्योंकि उतनी जमीन छिन जाएगी पैदावार से। अब तो हमें सारी फैक्ट्रियां जमीन के नीचे डाल देनी चाहिए। हिंदुस्तान में कोई रेल का मार्ग अब जमीन के ऊपर नहीं होना चाहिए। क्योंकि उतनी जमीन हम नहीं खो सकते, वह जमीन हमें पैदावार के लिए चाहिए। लेकिन नहीं, हम जमीन खोए चले जा रहे हैं। जमीन के नीचे हमारी कोई दिशा नहीं कि हम जमीन के नीचे प्रवेश कर जाएं। हवा में उठ जाएं, समुद्र पर चले जाएं। अब हिंदुस्तान में कितने लड़के केमेस्ट्री पढ़ रहे हैं, कितने लड़के केमेस्ट्री में पी.एच.डी. कर रहे हैं। लेकिन बड़ी हैरानी की बात मालूम पड़ती है कि हिंदुस्तान की केमेस्ट्री का पी.एच.डी. भी आखिर एक कालेज में नौकरी के लिए खड़ा हो जाता है। Page 44 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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