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________________ भारत का भविष्य उस जंगल में लगी हुई आग के बीच अंधे और लंगड़े ने एक समझौता कर लिया। एक बड़ा कीमती समझौता कर लिया। वह समझौता यह था कि अंधा चले और लंगड़ा चलाए। वह समझौता यह था कि लंगड़ा अंधे के कंधों पर सवार हो जाए। तब वे दो आदमी एक आदमी की तरह काम करने लगें। जिसके पास पैर हैं वह पैर दे दे और जिसके पास आंख हैं वह आंख दे दे। करीब-करीब आज हिंदुस्तान ऐसी हालत में है। नई पीढ़ी के पास पैर हैं, ताकत है, ज्ञान से मिली हुई नई ताकत है, क्योंकि आज तो ज्ञान ही बड़ी से बड़ी ताकत है। बेकन ने कभी कहा था कि नालेज इज़ पावर। उस दिन यह बात सच न थी, आज यह बात सच हो गई है। आज तलवार उतनी बड़ी ताकत नहीं है और न मसल्स की ताकत उतनी बड़ी है। और ये सब पिछड़ी हुई ताकतें हैं जिनका कोई अर्थ नहीं रह गया। आज ज्ञान सबसे बड़ी ताकत है। तो बेटों के पास ज्ञान है, ताकत है, लेकिन बेटों के पास आंख नहीं हो सकती। आंख आज भी अनुभव से मिलती है। आंख आज भी जीवन को गुजरने से पता चलती। वह जो विज़डम की आंख है वह आज भी बूढ़े के पास है, वह आज भी बाप के पास है, वह आज भी शिक्षक के पास है। लेकिन इन दोनों के बीच तालमेल, हार्मनी टूट गई है। अगर भारत की दोनों पीढ़ियों ने समझौता नहीं किया और अगर दोनों के बीच कोई संयोग, कोई संवाद, कोई डायलाग नहीं संभव नहीं हो सका, तो भारत इतने बड़े खतरे में पड़ जाएगा जितने बड़े खतरे में वह कभी भी नहीं पड़ा था। हालांकि बहुत खतरे भारत ने देखे हैं। बहुत तरह की गुलामियां, बहुत तरह की गरीबियां, बहुत तरह की परेशानियां। लेकिन जो भविष्य हमारे सामने आएगा वह सबसे खतरनाक होगा। क्योंकि उसमें सबसे बड़ी जो विघटन, जो डिसइंटिग्रेशन मुल्क में पड़ रहा है, वह यह है कि जिनके पास आंख हैं वे अलग टूट गए हैं और जिनके पास ताकत है वे अलग टूट गए हैं। तो पहली समस्या तो मुझे, इस समस्या से बहुत सी समस्याएं पैदा हो रही हैं। चाहे उस समस्या का नाम नक्सलाइट हो, चाहे उस समस्या का कोई और नाम हो, यह बाप और बेटे के बीच पैदा हुई खाई का परिणाम है। चाहे स्कूल-कालेजों में पत्थर फेंके जा रहे हों और चाहे स्कूल-कालेजों में बसें जलाई जा रही हों, यह समस्या कोई भी हो, लेकिन इस समस्या की बहुत बुनियाद में एक डायलाग खो गया है। बाप और बेटे के बीच कोई बातचीत, कोई तालमेल नहीं रह गया। बेटे कुछ और भाषाएं बोल रहे हैं, बाप कुछ और भाषाएं बोल रहे हैं और दोनों एक-दूसरे को सुनने में असमर्थ हो गए हैं। जुंग ने एक संस्मरण लिखा है। उसने लिखा है कि मेरे पागलखाने में एक बार दो प्रोफेसर पागल होकर आ गए। ऐसे भी प्रोफेसर पागलखानों में बड़ी संख्या में पहुंचते हैं। कई बार तो ऐसा लगता है कि जो प्रोफेसर एकाध दफे पागल न हो वह ठीक अर्थों में प्रोफेसर नहीं है। वे दो प्रोफेसर जुंग के पागलखाने में गए हैं। जुंग उनका अध्ययन करता है। क्योंकि वे दोनों बड़े बुद्धिमान लोग हैं। कभी-कभी बुद्धि की अति भी पागलपन बन जाती है। वे बहत ज्ञानी हैं। लेकिन कभी-कभी बहत ज्ञान व्यक्तित्व को तोड़ जाता है। जैसे ज्यादा भोजन न पच पाए तो नुकसान हो जाता है, वैसे ज्यादा ज्ञान भी न पच पाए तो नुकसान हो जाता है। और करीब-करीब हमारी सदी ज्यादा ज्ञान के अपच से पीड़ित हैं। ज्ञान रोज चला आता है और पचाने का, खून बनाने का, हड्डी-मांस बनाने का मौका ही नहीं मिलता। जब तक पुराना ज्ञान हड्डी-मांस बने तब तक नया ज्ञान Page 37 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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