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________________ भारत का भविष्य आगे नहीं रह सकता। और अगर जरा भी पिछड़ गया तो जो दो कदम पीछे है वह आगे हो जाएगा। इसलिए फासले गिर गए हैं। लेकिन आदतें गिरने में वक्त लेती हैं। ज्ञान बढ़ जाता है, आदमी बदलने में समय लेता है। आदमी की आदतें बड़ी मुश्किल से बदलती हैं। उन आदतों की न बदलाहट हमारे लिए बहुत तरह की समस्याएं पैदा करती हैं। अब जैसे हिंदुस्तान के सामने एक समस्या बड़ी से बड़ी जो है वह यह है कि हिंदुस्तान की पुरानी पीढ़ी और नई पीढ़ी के बीच संबंध कैसे निर्मित हों ? संबंध टूट गए हैं। मैं हजारों घरों में ठहरता हूं, मैं किसी बाप और बेटे को बोलचाल की स्थिति में नहीं देखता, कोई कम्युनिकेशन नहीं है। बाप और बेटे बैठ कर बातचीत करते हों, एक-दूसरे की समस्याएं समझते हों, ऐसी बात नहीं है। हां, कभी-कभी बात होती है, जब बेटे को बाप से कुछ पैसे हथियाने होते हैं या बाप को बेटे को कुछ उपदेश देना होता है, तब कभी - कभी कुछ बातचीत होती है। लेकिन वह बातचीत एक तरफा होती है, वन वे ट्रैफिक होता है। जब बाप बोल रहा होता है तब बेटा बचने की कोशिश में होता है कि कब निकल भागे और जब बेटा बोल रहा होता है तब बाप बचने की कोशिश में होता है कि कब निकल भागे। उसमें कम्युनिकेशन नहीं है। हिंदुस्तान की दो पीढ़ियां इस तरह से टूट कर खड़ी हो गई हैं कि उनके बीच एक गैप, एक एबिस हो गई है। हिंदुस्तान की अधिकतम समस्याओं के लिए यह गैप, यह अंतराल, यह खाई जिम्मेवार हो रही है। और यह सब बात इतनी अजीब होती जा रही है कि करीब-करीब बेटे बाप की भाषा नहीं समझ पा रहे हैं, बाप बेटे की भाषा नहीं समझ पा रहे हैं। यह नासमझी मुल्क को बहुत गहरे गड्ढे में गिरा देगी। यह इसलिए गड्ढे में गिरा देगी कि बेटों के पास ताकत बहुत, बेटों के पास नये ज्ञान का अंबार भी है। लेकिन बेटों के पास विज़डम जैसी चीज आज भी नहीं है और कभी भी नहीं होगी। विज़डम और नालेज में थोड़ा सा फर्क है। नालेज तो आज बेटे के पास बाप ज्यादा है, लेकिन विज़डम आज भी बेटे के पास बाप से ज्यादा नहीं है। विज़डम सदा ही अनुभव से आती है। ज्ञान शिक्षण से भी आ जाता है। विज़डम तो जीवन को जीने से आती है। ज्ञान तो किताब से भी आ जाता है, इनफार्मेशन से भी आ जाता है, ज्ञान तो स्कूल की परीक्षा से भी आ जाता है। पुरानी दुनिया में ज्ञान और प्रज्ञा, नालेज और विज़डम दोनों ही अनुभव से आते थे। नई दुनिया में ज्ञान शिक्षा से आता है और विज़डम प्रज्ञा अनुभव से आती है। बाप के पास प्रज्ञा तो है, विज़डम तो है, नालेज में वह बेटे से पिछड़ गया है। बेटे के पास नालेज है और ताकत है । और इन दोनों के बीच कोई संबंध नहीं रह गया है। हालत करीब-करीब ऐसी है जैसे आपने एक कहानी सुनी होगी कि जंगल में आग लग गई और एक अंधा और लंगड़ा उस जंगल में फंस गए हैं। अंधा भागता है, भाग सकता है, उसके पास ताकतवर पैर हैं, लेकिन भागने से भरोसा नहीं है कि जंगल के बाहर निकल जाएगा। डर यही है कि जोर से भागेगा तो और जल्दी आग में गिर जाएगा। चारों तरफ आग बढ़ती जा रही है। लंगड़ा देख सकता है, उसके पास आंखें हैं, उसे दिखाई पड़ रहा है कि कहां से निकल सकता है, लेकिन उसके पास पैर नहीं हैं कि दौड़ सके। उस अंधे और लंगड़े ने जितनी बुद्धिमत्ता दिखाई, अगर हिंदुस्तान के बाप और बेटों ने भी उतनी बुद्धिमत्ता दिखाई तो हम इस देश को बचा लेंगे, अन्यथा यह डूब जाएगा । Page 36 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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