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________________ भारत का भविष्य भाग्य को भारत के शब्दकोश से उखाड़ कर फेंक देना है। वह भारत के शब्दकोश में नहीं रह जाना चाहिए। तो हम एक नया समाज, एक नई दुनिया, और एक नया आदमी, जो संपन्न हो, सुखी हो, शांत हो और प्रभु को प्रेम भी दे सके, पैदा कर सकते हैं। ये थोड़ी सी बातें मैंने कहीं, ये पुराने चर्च को गिराने के लिए कहीं । और नये चर्च को बनाना हो तो पहले पुराने को गिरा देना पड़े। और पुराना गिर जाए तो फिर नया बनाना ही पड़ता है। और पुराना न गिरे तो हम सोचते हैं एक रात और गुजार दो, एक सांझ और गुजार दो, थोड़ा कहीं टीम-टाम कर लो, कोई दीवाल टूट गई है तो सुधार लो, कोई दरवाजा खराब हो गया है तो रंग पोत लो, कुछ थोड़ा सा बदल लो और इसी में जीए चले जाओ। यह पूरा का पूरा समाज का हमारा ढांचा सड़ गया है, पूरा ढांचा सड़ गया है। और यह आज नहीं सड़ गया, यह बहुत दिनों से सड़ा हुआ है। यह हमें सड़ा हुआ ही मिलता रहा है। इसलिए चूंकि हमें सड़ा हुआ ही मिलता है इसलिए खयाल भी नहीं आता कि यह सड़ गया। अगर यह हमको अच्छा मिले और फिर सड़ जाए तो हमें खयाल भी आए। वह तो हम बूढ़े अगर पैदा हों तो हमको कभी पता भी न चले कि हम बूढ़े कब हो गए। पता कैसे चले ? वह तो हम बच्चे पैदा होते हैं इसलिए पता चलता है कि बुढ़ापा आ गया है। यह समाज पांच हजार साल से बूढ़ा है। इसलिए अब हमें यह भी पता चलना बंद हो गया है कि हम बूढ़े हो गए, कि हम मर गए, कि हम सड़ गए हैं। यह बोध आ सके इसलिए सोचने के लिए कुछ सूत्र मैंने आपसे कहे। जरूरी नहीं कि मेरी बातें मान लें। किसी की बातें माननी जरूरी नहीं हैं। वह भी भारत की एक बीमारी है कि वह किसी की भी बातें मान लेता है। नहीं, मेरी बात मानने की जरूरत नहीं । सोचें, मैंने कहा उस पर संदेह करें, विचार करें। हो सकता है कि सब गलत हो, हो सकता है कुछ ठीक हो । अगर आपके सोचने से कुछ उसमें ठीक आपको दिखाई पड़े तो फिर वह मेरा नहीं रह जाता, वह आपका अपना सत्य हो जाता है । और वे ही सत्य काम में आते हैं जो हमारे अपने विचार का फल हैं। और कोई सत्य काम में नहीं आते हैं। उधार सत्य, असत्य से भी बदतर होते हैं । और हमारे पास सिवाय उधार सत्यों के और कुछ भी नहीं हैं। बारोड, हजारों साल से उधार है। हमें अपने सत्य खोजने पड़ेंगे। हर युग को, हर समाज को, हर व्यक्ति को, अपना सत्य खोजना पड़ता है। सत्य की खोज के साथ ही जीवन की ऊर्जा जगती है और सृजन की संभावना खुलती है। मेरी इन बातों को इतने शांति और प्रेम से सुना, उससे बहुत अनुगृहीत हूं। और अंत में सबके भीतर बैठे परमात्मा को प्रणाम करता हूं, मेरे प्रणाम स्वीकार करें। तीसरा प्रवचन भारत का भविष्य मेरे प्रिय आत्मन्! यह देश शायद अपने इतिहास के सबसे ज्यादा संकटपूर्ण समय से गुजर रहा है। संकट तो आदमी पर हमेशा रहे हैं। ऐसा तो कोई भी क्षण नहीं है जो क्राइसिस का, संकट का क्षण न हो। लेकिन जैसा संकट आज है, ठीक Page 31 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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