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भारत का भविष्य
परमात्मा । कोई निर्णायक नहीं है हमसे बाहर, हम ही निर्णायक हैं। हम जो करते हैं वही हमारा निर्णय हमारा भाग्य बन जाता है।
लेकिन हमारा पढ़ा-लिखा आदमी भी, इंजीनियर भी, डाक्टर भी, सड़क के किनारे बैठे चार आने की फीस में हाथ देखने वाले आदमी को हाथ दिखा रहा है। पूछ रहा है भविष्य क्या है ? भविष्य पूछना नहीं पड़ता कि क्या है भविष्य बनाना पड़ता है। यह कौम सदा से पूछ रही है भविष्य क्या है? जैसे भविष्य कोई रेडीमेड चीज है, जिसको हम पा लेंगे। मिल जाएगा, बस आ जाएगा, भविष्य कुछ रेडीमेड नहीं है, भविष्य निर्माण करना होता है।
अमेरिका आज तीन सौ वर्षों की कौम है केवल । तीन सौ वर्ष किसी कौम के इतिहास में बहुत ज्यादा नहीं होते । लेकिन तीन सौ वर्ष में अमेरिका ने सारी दुनिया की सर्वाधिक संपत्ति और समृद्धि पैदा की है। और हम कोई दस हजार वर्ष पुरानी कौम हैं और भूखे मर रहे हैं। सोचने जैसा है कि बात क्या है ? हमारे पास जमीन अमेरिका से बुरी नहीं। और अमेरिका में भी तीन सौ वर्ष पहले जो लोग रह रहे थे, अमेरिकी, असली अमेरिकी, रेड इंडियन वे तो गरीब ही थे, वे आज भी गरीब हैं। उसी जमीन पर गरीब थे, उसी जमीन पर दूसरे लोगों ने आकर इतनी संपत्ति पैदा कर ली।
काउंट केसरलिंग हिंदुस्तान आया। एक जर्मन विचारक था। लौट कर उसने एक किताब लिखी और उस किताब में उसने एक वाक्य लिखा । वह मैं पढ़ता था तो मैं बहुत हैरान हुआ । उसने लिखा : इंडिया इज ए रिच लैंड, व्हेयर पुअर पिपुल लिव । हिंदुस्तान एक अमीर देश है, जहां गरीब लोग रहते हैं। मैं बहुत हैरान हुआ। मैंने कहा, अगर देश अमीर है तो गरीब लोग कैसे रहते होंगे? और अगर गरीब लोग रहते हैं तो अमीर कहने का क्या मतलब है? क्या मजाक है? लेकिन बात उसने ठीक ही कही है। देश तो अमीर है लेकिन रहने वाले भाग्यवादी हैं । और भाग्यवादी कभी अमीर नहीं हो सकते।
देश के पास तो अनंत संभावना है। उसके साथ नदियां हैं, पहाड़ हैं, आकाश है, जमीन है, समुद्र है, सब है। इतनी विविध रूप से प्रकृति जमीन में किसी देश को उपलब्ध नहीं है। इतने विस्तार में इतने गहरे स्रोत वाला संभावना किसी के पास नहीं। लेकिन इतना गरीब आदमी जैसा हमारे पास है ऐसा भी किसी को उपलब्ध नहीं । भगवान ने खूब मजाक किया है। इतनी समृद्ध संभावनाएं दी थीं, तो इतना भाग्यवादी आदमी क्यों दिया ? लेकिन वह भाग्यवादी आदमी अनंत संभावनाओं को ऐसा ही रिक्त छोड़ देता है और भूखा मर रहा है। अभी घोषणाएं कर रहे हैं समझदार लोग कि उन्नीस सौ अठहत्तर तक हिंदुस्तान में एक बड़ा अकाल पड़ सकता है। अगर सारी दुनिया ने गेहूं नहीं दिया तो उन्नीस सौ अठहत्तर में हिंदुस्तान में इतना बड़ा अकाल पड़ सकता है जितना मनुष्य के इतिहास में कभी भी कहीं नहीं पड़ा। उस अकाल में जो लोग सोचते हैं, समझते हैं, उनका अंदाज है कि बीस करोड़ लोग भी मर सकते हैं ।
दिल्ली में मैं एक बड़े नेता से कह रहा था, उन्होंने कहा, उन्नीस सौ अठहत्तर बहुत दूर है। अभी तो उन्नीस सौ बहत्तर पड़ा है। अभी तो इलेक्शन उन्नीस सौ बहत्तर का हो जाए फिर सोचेंगे । उन्नीस सौ अठहत्तर बहुत दूर है, और फिर उन्होंने कहा, जो भाग्य में होना होगा।
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