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भारत का भविष्य
उन्होंने कहा, आप कहते हैं कि बर्तन, रेडियो और अपना सामान भी यहां उनके जो मित्र थे सब बांट गए हैं, यहां से कोई सामान नहीं ले गए। मैंने कहा, भौतिकवादी लोग थे और आप अध्यात्मवादी लोग हैं। आपको कुछ दे गए हैं? उन्होंने कहा, नहीं, हमें क्या जरूरत है, हमारे पास सब है। तभी उनके छोटे लड़के ने कहा कि नहीं, एक चीज हमारे पास भी है। रस्सी छोड़ गए हैं, कपड़ा सुखाने के लिए रस्सी थी ऊपर, वह मम्मी छोड़ लाई है। क्योंकि वह रस्सी बहुत प्लास्टिक की अच्छी बनी हुई रस्सी यहां मिल भी नहीं सकती। वह हमारे पास है। आध्यात्मिक आदमी रस्सी छोड़ लाया है। वह रस्सी भी उन्होंने बांधी नहीं है, क्योंकि रस्सी कीमती है। उसे उन्होंने सम्हाल कर रख लिया है। यह हमारा चित्त ऐसा विकृत, ऐसा परवर्टेड, ऐसा कुरूप क्यों हो गया? इसके होने का क्या कारण है? इसके होने के कारण हैं। वह मैं तीसरी बात मैं आपसे कहूं, हमने जिंदगी के तथ्यों को स्वीकार नहीं किया। जिंदगी में धन की जरूरत है। धन मिट्टी नहीं है। और अगर धन मिट्टी होता, तो हम मिट्टी से ही काम चला लेते, फिर धन की कोई जरूरत न होती। नहीं, हम झूठ बोल रहे हैं, धन मिट्टी नहीं है। और जिन मंदिरों में यह समझाया जाता है कि धन मिट्टी है, वे मंदिर भी धन की ही कामना किए चले जाते हैं। जो साधु-संन्यासी समझा रहे हैं कि धन मिट्टी है, वे भी धन की ही कामना किए जाता है। मैं एक संन्यासी के आश्रम में रुका हआ था। वे समझा रहे हैं लोगों को कि सब असार है और लोग उनके पास पैसे लाकर रखते हैं तो वे असार होने की बात छोड़ कर पहले पैसे पैर के नीचे सरका लेते हैं, फिर बैठ कर शुरू कर देते हैं कि सब असार है। मैं बहुत हैरान हुआ कि ये असार को पैर के नीचे क्यों सरका रहे हैं? जिंदगी के सहज तथ्यों की अस्वीकृति आदमी को बेईमान कर देती है। हमारे यहां एक-एक आदमी अलग-अलग बेईमान नहीं है, हमारा संस्कृति बेईमान है। अगर एक-एक आदमी अलग-अलग बेईमान होता तो हम एक-एक आदमी को जिम्मेवार ठहराते। नहीं, हमारा समाज बेईमान है। इसलिए इस समाज में जीना तक मुश्किल है ईमानदार होकर। यानी जिस समाज में हजारों साल तक ईमान की बात की, उस समाज में ईमानदार आदमी का जीना असंभव है। यह बड़े आश्चर्य की बात है। और एक बेईमान समाज में ईमानदार आदमी बड़ी मुश्किल में पड़ जाता है। उसका जिंदा रहना असंभव हो जाता है। सब तरफ बेईमानी है। और सबसे बड़ी बेईमानी जो मैं आपसे कहना चाहूं वह यह है कि हमने जिंदगी को ही झुठला दिया है। जिंदगी की सारी सच्चाइयों को ही इंकार कर दिया है। हम किसी जिंदगी के सत्य को स्वीकार नहीं करते। हम सत्यों की जगह सिद्धांतों को स्वीकार करते हैं। सिद्धांत, अजीब से सिद्धांत जो हमने आदमी के ऊपर बिठा दिए हैं बिना आदमी की फिक्र किए। हमने भौतिकवाद को स्वीकार नहीं किया। वह हमारे अनाचार में उतर जाने का कारण बन गया। भौतिकवाद जिंदगी का आधार है, अध्यात्म जीवन का शिखर है। लेकिन भौतिकवाद जीवन की बुनियाद है। और अगर कोई मकान बनाना हो, या कोई मंदिर बनाना हो और कोई कहता है कि हम बिना बनियाद के मंदिर बनाएंगे, और हम सिर्फ
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