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________________ भारत का भविष्य सोने का शिखर चढ़ाएंगे, पत्थर की बुनियाद न रखेंगे । तो वह पागल है, मंदिर कभी नहीं बनेगा। यह बड़े मजे की बात है, शिखर बिना बुनियाद के नहीं हो सकता, लेकिन बुनियाद बिना शिखर के भी हो सकती है। बिना जड़ के फूल नहीं हो सकता, लेकिन बिना फूलों के भी जड़ हो सकती है। जिंदगी का जो निम्न है वह बिना ऊंचे के हो सकता है, लेकिन ऊंचा बिना नीचे के नहीं हो सकता। हम इस भूल में पड़ गए हैं। हम कहते हैं, हम सिर्फ ऊंचे को बचाएंगे। हम कहते हैं, हम सिर्फ आत्मा को बचाएंगे, शरीर से हमें कोई प्रयोजन नहीं । इसलिए आत्मा तो बची ही नहीं, शरीर भी नहीं बचा है। शरीर आधार है, उसे बचाना पड़ेगा। वह बचे तो आत्मा के बचने की संभावना शुरू होती है । जगत आधार है, वह बचे तो परमात्मा की खोज भी हो सकती है। लेकिन इस सारे जीवन को, जगत को, पदार्थ को, शरीर को, इस सबके हम दुश्मन हैं। इस दुश्मनी ने हमें मुश्किल में डाल दिया। क्योंकि जिस शरीर में जीना है उसकी दुश्मनी अगर आप करेंगे तो आप बेईमान हो जाएंगे। जीना पड़ेगा शरीर में, श्वास लेनी पड़ेगी, भोजन करना पड़ेगा, कपड़े पहनने पड़ेंगे, और चौबीस घंटे इन्हीं की निंदा भी करनी पड़ेगी। जीवन की निंदा एक तरह की रिक्त पैदा कर देती, और एक तरह का आदमी पैदा करती है जो स्किजोफ्रेनिक हो जाता है, जिसके मन में दोहरे हिस्से हो जाते हैं, जिसके भीतर स्प्लिट हो जाते हैं, टुकड़े टूट जाते हैं, खंड-खंड हो जाते हैं। एक हिस्सा एक तरफ जीने लगता है, दूसरा हिस्सा उसके विरोध में बोलता चला जाता है। जब आप खाना खा रहे हैं तब भी आपके मन में खाने की निंदा है, जब आप अपनी पत्नी को प्रेम कर रहे हैं तब भी आप जानते हैं कि पाप कर रहे हैं, जब आप अपने बेटे को आप खिला रहे हैं तब भी आप जानते हैं कि यह माया-मोह है, आसक्ति है, बहुत बुरा है। अजीब बात है ! बेटे का प्रेम भी विषाक्त हो जाएगा। पति और पत्नी के बीच का संबंध भी पायज़नस हो जाएगा। सारी जिंदगी जहरीली हो जाएगी, क्योंकि जहां जीना है उसकी ही निंदा है, उसका ही कंडमनेशन है। ऐसे नहीं हो सकता। अगर कोई माली फूलों को गाली देता हो तो उसके हाथ खाद डालने में कमजोर हो जाएंगे। अगर कोई माली फूलों की निंदा करता हो तो फूलों को सम्हालने में उसकी हिम्मत अधूरी हो जाएगी। अगर फूल में खाद देनी है और पानी देना है तो फूल को प्रेम ही करना पड़ेगा, अनकंडीशनल, बेशर्त प्रेम करना पड़ेगा । और मेरी अपनी समझ यह है कि परमात्मा जगत का विरोध नहीं है जैसा हमने समझा, परमात्मा का अगर जगत से विरोध होता जैसा महात्माओं का है, तो जगत को वह कभी का मिटा सकता था, जरूरत क्या है ? मेरी समझ में तो महात्मा परमात्मा के पक्के दुश्मन हैं। क्योंकि वे कहते हैं, जगत को मिटाओ। वे कहते हैं, आवागमन से मुक्ति चाहिए, जन्म-मरण से छुटकारा चाहिए। वह परमात्मा भेजे ही चला जा रहा है, वह इन महात्माओं की सुनता नहीं, वह जगत को बनाए ही चला जा रहा है। और महात्मा जगत को उजाड़ने के लिए लगे हुए हैं। पता नहीं शैतान इनके दिमाग में खयाल देता है, या कौन इनके दिमाग में खयाल देता है। नहीं, परमात्मा जब इस प्रकृति को बनाता है, और परमात्मा के बिना सहारे के तो यह जीवन नहीं टिकेगा, तो इस प्रकृति को प्रेम करना पड़ेगा, इस शरीर को भी प्रेम करना पड़ेगा, इस जीवन को भी प्रेम करना पड़ेगा। यही प्रेम इतना गहरा हो जाए कि परमात्मा तक उठ सके। यही प्रेम इतना ऊंचा उठ जाए कि जड़ों में न रह जाए, फूलों तक पहुंच सके। यह प्रेम इतना बड़ा हो जाए कि बुनियाद ही नहीं, शिखर भी इससे आ सकें। लेकिन वह हमसे Page 28 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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