SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 166
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भारत का भविष्य ने पूछा कि आप जैसा मौलिक आदमी कोई भी नहीं है। तो पिकासो ने कहा, आई वाज़ जस्ट बी फलिंग द मैन काइंड, मैं तो सिर्फ आदमियों को बेवकूफ बना रहा था। पिकासो के इस एक वचन ने सारे पश्चिम की मौलिकता को कठिनाई में डाल दिया। बड़ी हैरानी हो गई। क्योंकि स्त्री के चेहरे में चांद तो देखा गया था, स्त्री की आंखों में कमल देखा गया था, लेकिन स्त्री की आंखों में छिपकली कभी नहीं देखी गई थी? उसको आधुनिक कवि ने देख लिया। लेकिन पिकासो ने जब यह कहा कि मैं सिर्फ लोगों को मूर्ख बना रहा था। तो बड़ा सदमा पहुंचा है पश्चिम को।। असल में अगर नया ही सही है तो नया एब्सडिटी में ले जाएगा, मुर्खता में ले जाएगा। क्योंकि बुद्धिमत्ता हजारों साल का निचोड़ होती है। विजडम और नालेज में यही फर्क है। नालेज नई हो सकती है, विजडम सदा ही पुरानी होती है। ज्ञान और प्रज्ञा में यही फर्क है। ज्ञान सदा ही नया होना चाहिए, नहीं तो उसको ज्ञान कहना बेमानी है। लेकिन प्रज्ञा, बुद्धिमत्ता, विज़डम, विज़डम सदा पुरानी होगी। इसलिए जवान आदमी ज्ञान को उपलब्ध हो सकता है, लेकिन विज़डम को सिर्फ बूढ़ा आदमी ही उपलब्ध हो सकता है। जवान आदमी बुद्धिमत्ता को उपलब्ध नहीं हो सकता। हेनरी फोर्ड ने अपने संस्मरणों में लिखा है कि जिस दिन पचास साल से कम उम्र के लोग हुकूमत करने लगेंगे उस दिन दुनिया में बड़े खतरे हो जाएंगे। खतरे हो ही जाएंगे। लेकिन हेनरी फोर्ड को पता नहीं है कि पचास साल से कम उम्र के लोग हुकूमत करके जितना खतरा पहुंचाएंगे, पचास साल से कम के लोग दुनिया में शिक्षक होकर उससे भी ज्यादा खतरा पहुंचा दे? असल में शिक्षक होने योग्य बुद्धिमत्ता अनुभव से झरती है। हां, अन्वेषक होने योग्य बुद्धिमत्ता, इनवेंटर और डिस्कवर्ड होने योग्य ज्ञान, युवा चित्त को उपलब्ध होता है। इसलिए बूढ़े दुनिया में आविष्कार नहीं करते। सारे आविष्कार करीब-करीब पैंतीस साल के आस-पास पूरे हो जाते हैं। मनुष्य की सारी बड़ी खोजें नई उम्र की खोजें हैं। लेकिन मनुष्य के जीवन के सारे अनुभव वृद्ध के अनुभव हैं। और जब मैं कह रहा हूं पुराने और नये के बीच सेतु, तो मैं यह कह रहा हूं कि बूढ़े और जवान के बीच सेतु। बूढ़े और जवान के बीच एक ब्रीज चाहिए। यह संभव हो सकता है। यह संभव कैसे होगा? हम किस दिशाओं में सोचना शुरू करें कि यह संभव हो जाए। दो-तीन दिशाएं मैं आपको सुझाना चाहूं। एक, भारत के पुरानेपन की बुनियादी भूल क्या थी यह हम समझ लें तो भारत के नयेपन की बुनयादी सुधार क्या होगा यह हमारे समझ में आ सके। भारत के पुरानेपन की एक बहुत बुनियादी भूल थी और वह बुनियादी भूल यह थी की हम जीवन को अस्वीकार कर दिए थे। हमने जीवन को कभी स्वीकार नहीं किया। हम जीवन के शत्रु रहे। हमारे मन में स्वीकृति है स्वर्ग की, मोक्ष की, हमारे मन में स्वीकृति है मृत्यु के बाद की। मृत्यु के पहले हम मजबूरी में जी रहे हैं, ए नेसेसरी ईविल की तरह। यह जो जीवन है हमारा, यह हमारे मन में निंदा से भरा हुआ है, कंडेमड है। इस जिंदगी में सिर्फ हम पाप की वजह से भेजे गए हैं, पाप का भुगतान करने के लिए। यह जिंदगी हमारे पाप कर्मों का फल है। और जो इस जिंदगी में शुभ कर्मों को उपलब्ध हो जाएगा, उसको वापस नहीं जन्मना पड़ेगा। हमने जिंदगी की बड़ी गंदी Page 166 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy