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भारत का भविष्य
तस्वीर खींच रखी है। हम जिंदगी को शत्रु की तरह देख रहे हैं। कारागृह की तरह, दंड की तरह, पाप की तरह।
और जो कौम जिंदगी को पाप की तरह देखेगी, दंड की तरह देखेगी, जो कौम जिंदगी को अपराध की तरह देखेगी और जो कौम जिंदगी से भागने के लिए उत्सुक होगी, वह जिंदगी को सुंदर और समृद्ध नहीं बना सकती। कारागृह को कोई पागल कैदी ही होगा कि उसकी दीवालों को सुंदर बनाने की कोशिश करे। कारागृह का कोई पागल ही कैदी होगा कि उसके सिकंचों पर रंगीन कागज चढ़ाए। कोई पागल कैदी होगा कि अपने हाथ की जंजीरों को सोने से मढ़े। नहीं, कोई नहीं मढ़ेगा। जिन जंजीरों को तोड़ना है उन्हें सोने से मढ़ने की कोई जरूरत नहीं। और जिन सिकंचों तोड़ कर बाहर निकल जाना है उन सिकंचों को सुंदर बनाने से वे और मजबूत हो जाते हैं। और जिस कारागृह से भागना है उस कारागृह की दीवालें पुती हैं, नहीं पुती हैं; स्वच्छ हैं, नहीं स्वच्छ हैं इससे क्या प्रयोजन है? भारत जिंदगी को एक जेलखाने की तरह लेता रहा है। इससे नुकसान हुए हैं। इसके नुकसान के कारण ही हम कमजोर हुए हैं। इस वृत्ति के कारण ही हम विज्ञान न खोज सके हैं। इस वृत्ति के कारण ही हम जिंदगी को संपन्न, समृद्ध, शक्तिशाली न बना सके। इस वृत्ति के कारण हम गुलाम हुए हैं। इस वृत्ति के कारण हमने भूखे रहने को भी सांत्वना बना लिया। इस वृत्ति के कारण हमने उम्र न बढ़ाई, स्वास्थ्य न बढ़ाया, सौंदर्य न बढ़ाया। इस वृत्ति ने हमें अत्यंत दीन बना दिया सब दृष्टियों से। भारत के पुराने मन की जो बुनियादी भूल है वह जीवन को आह्लादपूर्वक स्वीकार न करना। जीवन को दुखपूर्वक स्वीकार करना। भारत का पुराना मन पैसिमिस्टिक है, निराशावादी है। वह कह रहा है, जीवन दुख है; वह कह रहा है, जीवन छोड़ देने जैसा है। जीवन आवागमन से मुक्ति के लिए सिर्फ एक अवसर है। अगर भारत कभी भगवान के सामने भी हाथ जोड़ कर खड़ा है तो इसीलिए कि कब जीवन से छुटकारा मिले? यह हमारे चित्त की दशा है निश्चित ही जिम्मेवार हुई है। भारत जैसी बड़ी संपत्ति वाला देश, जिसके पास बड़े स्रोत थे, वह उन स्रोतों का कोई उपभोग न कर पाया। भारत जैसी विराट संख्या वाला देश, जिसके पास बड़ी शक्ति थी, वह इतनी बड़ी शक्ति को भी रहते हुए गुलाम बन सका। बहुत छोटी ताकत की कौमें भारत पर हावी हो गइ। क्योंकि भारत के मन ने संकोच को स्वीकार कर लिया, विस्तार को इनकार कर दिया। असल में कोई जिम्मेवार नहीं है इस देश को गुलाम बनाने के लिए, हम गुलाम बनने के लिए इतने तत्पर थे कि अगर हमें कोई गुलाम न बनाता तो ही आश्चर्य होता। कोई जिम्मेवार नहीं है हमको गरीब बनाने के लिए। लेकिन हम इतने प्रसन्न हैं गरीब बन जाने में कि जिन्होंने हमें गरीब बनाया हम उनके लिए हजार-हजार धन्यवाद से भरे हए हैं। दीनता और दरिद्रता और दासता हमें स्वीकत हैं। और जब हम दीन हुए, दास हुए, परेशान हुए तो हमारा सिद्धांत और अटल हो गया कि जिंदगी दुख है। हमने कहा कि ऋषि-मुनियों ने ठीक ही कहा है कि जिंदगी दुख है, देख लो कि जिंदगी दुख है। हमने इस बात से लड़ने की कोशिश न की। इस बात से हम बल्कि प्रसन्न हुए कि हमारे सब सिद्धांत सही निकले। अब हमारे मुल्क में साधु-संन्यासी लोगों को समझा रहा है कि यह कलियुग है और ऋषि-मुनि पहले कह गए कि लोग दुखी होंगे, मरेंगे, परेशान होंगे, भूखे रहेंगे। हम अपने शास्त्र को देख कर बड़े प्रसन्न हो रहे हैं कि हमारा शास्त्र कितना सही है कि कलियुग आ गया। यह कलियुग आने की वजह से शास्त्र में लिखा है ऐसा
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