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भारत का भविष्य
पुराने के सारे अनुभव को साथ ले जा सके। इसका अर्थ यह होगा कि भारत कोई चीज पुरानी है सिर्फ इसलिए इनकार न कर दे और कोई चीज नई है इसलिए सिर्फ स्वीकार न कर ले। अब तक हमने ऐसा किया है कि जो पुराना है वह ठीक है और जो नया है वह गलत है। हम एक अति पर जी रहे थे। पुराना सदा ठीक है नया सदा गलत है ऐसी हमारी धारणा थी। इसलिए हर आदमी जिसको कोई चीज सही सिद्ध करनी हो पहले उसे इस मुल्क में यह सिद्ध करना पड़ता है कि वह कितनी पुरानी है? । गीता अगर दो हजार साल पुरानी है तो थोड़ी कम सही हो जाएगी, और अगर पांच हजार साल पुरानी है तो थोड़ी ज्यादा सही हो जाएगी, और अगर पचास हजार साल पुरानी है तो और ज्यादा सही हो जाएगी। और अगर वेद लाख साल पुराने हैं तो और ज्यादा सही हो जाएंगे, और अगर सनातन हैं, सदा से हैं, तब तो उनके सही होने में कोई शक ही न रह जाएगा। इसलिए लोकमान्य तिलक पूरे समय कोशिश करते रहे कि वेद कम से कम नब्बे हजार वर्ष पुराने सिद्ध हो जाएं। क्योंकि अगर नब्बे हजार वर्ष पुराने सिद्ध हो गए, तो फिर बहुत ज्यादा सही हो जाएंगे। लेकिन कोई चीज पुरानी होने से सही नहीं होती। अब बहुत खतरा है कि हम दूसरे अति पर चले जाएं कि जो नया है वही सही है। नहीं; कोई चीज नये होने से भी सही नहीं होती। सही होना एक अलग बात है, जिसके लिए नया और पुराना होना संदर्भ के बाहर है, इररेलेवेंट है। अगर भारत को विकसित होना है तो उसे पुरानी भूल छोड़नी पड़ेगी कि पुराना होने से कुछ सही है और नई भूल पकड़ने से बचना पड़ेगा कि कोई चीज नये होने से सही है और भारत को खोजना पड़ेगा कि सही क्या है? अगर वह पुराना है तो भी सही है, अगर वह नया है तो भी सही है। और हम सही की खोज करके अगर जिंदगी को बनाने की कोशिश किए, तो भारत पुराने से टूटेगा नहीं और नया हो जाएगा। और अगर हमने नये को सही मानना शुरू किया तो पुराने से टूट ही जाना पड़ेगा। क्योंकि पुराना फिर गलत हो जाता है। पुराने का अर्थ हो जाता है गलत, जो पुराना है वह गलत।। पश्चिम उलटी अति पर जी रहा है। पश्चिम में अगर किसी व्यक्ति को कोई किताब कीमती है यह सिद्ध करना हो तो उसे यह सिद्ध करना पड़ता है कि यह बिलकुल नई है, यह बात कभी लिखी ही नहीं गई। अगर किसी की किताब को कोई सिद्ध कर दे कि यह तो पहले भी लिखी गई है, तो वह किताब बेकार हो गई, उसका कोई मतलब न रहा। इसलिए हर लेखक को यह सिद्ध करना पड़ता है कि वह मौलिक है, ओरिजिनल है। और ओरिजिनल होने की कोशिश में कई बेवकफियां भी करनी पड़ती हैं। क्योंकि आदमी इतने समय से पथ्वी पर है कि ओरिजिनल होना आसान मामला नहीं है। अगर आप एक खूबसूरत औरत बनाते हैं तो बहुत बार खूबसूरत औरत का चित्र बनाया जा चुका है। शायद ही संभव है कि हम कोई नई खूबसूरती औरत में खोज सकें। तो फिर क्या करना पड़े? तो फिर पिकासो जैसे चित्र बनाने पड़े—कि औरत के हाथ की जगह टांग लगानी पड़े और आंख की जगह कान लगाना पड़े, तब वह ओरिजिनल हो जाए। लेकिन वह औरत नहीं रह गई, ओरिजिनल तो हो गई। पिकासो की पेंटिंग्स की इज्जत पश्चिम में बनी, क्योंकि वह बिलकुल नई थी। उनमें पुराना कुछ भी नहीं था। लेकिन पिकासो ने अभी आखिरी दिनों में एक बात कह कर उसके भक्तों को बड़ी मुश्किल में डाल दिया। उसकी साठवीं वर्षगांठ पर उससे किसी
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