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________________ भारत का भविष्य मैं जयपुर में था एक मित्र आए और कहने लगे कि एक बहुत बड़े मुनि ठहरे हुए हैं, आप उनसे मिलने चलेंगे। मैंने कहा, वे बहुत बड़े मुनि हैं तुमने किस तराजू पर और कैसे तोला? उन्होंने कहा, इसमें क्या बड़ी बात है! खुद जयपुर महाराज उनके चरण छूते हैं! तो मैंने कहा कि इसमें जयपुर महाराज बड़े हो गए कि मुनि बड़े हो गए, कौन बड़ा हुआ? अगर जयपुर महाराज उनके चरण न छुएं तो मुनि छोटे हो जाएंगे? जयपुर महाराज चरण छूते हैं तो मुनि बड़े हो गए! क्यों? क्योंकि जयपुर महाराज बड़े हैं। यह धन की प्रतिष्ठा हुई या त्याग की प्रतिष्ठा हुई? यह प्रतिष्ठा किसकी है? यह प्रतिष्ठा धन की प्रतिष्ठा है। हमारे मन में धन की वासना है, ऊपर से निर्धनता का संतोषपूर्ण स्वीकार है। हमसे ज्यादा धन को पकड़ने वाले लोग कहां मिलेंगे! लेकिन हम गालियां देते रहेंगे कि सारी दुनिया भौतिकवादी है और हम अध्यात्मवादी हैं। वह जो भौतिकवाद को हम गाली देते हैं वह भीतरी हमारी इच्छाओं को दबाने का फल है। वह सूचना है। जिस दिन हिंदुस्तान आध्यात्मिक होगा उस दिन किसी को भौतिकवादी कहने जैसी निम्नतम शब्दों का उपयोग नहीं करेगा। हम सिवाय गालियों के और कुछ भी नहीं उपयोग कर रहे हैं। यह सब ऊपर से दिखाई पड़ने वाला संतोष झूठा है। इसने विकास को अवरुद्ध किया, मनुष्य को विकसित नहीं किया। न तो इसने आत्मा की तरफ पहुंचाने में सहायता दी और न जीवन की सुविधाओं को जुटाने के लिए ये मार्ग बन सका। इसने हमें एक कंठा में, एक भीतरी पीड़ा में, एक अंधकार में घेर कर खड़ा कर दिया है। नहीं; गांधीवादी तो नहीं था लेकिन ठीक गांधीवादी जैसी विचारधारा सदा से इस मुल्क के मन को पकड़े रही है। एक तो संतोष ने हमें नुकसान पहुंचाया और दूसरी विचारधारा हमने जो कर्म-फल का सिद्धांत अपने मुल्क में तीन हजार वर्ष से पकड़ रखा है, वह हमारे प्राण ले रहा है। हमने यह मान रखा है कि एक आदमी गरीब इसलिए है कि उसके पिछले जन्मों के कर्मों का फल भोग रहा है। उसने बुरे कर्म किए हैं इसलिए वह गरीब है। और एक आदमी इसलिए अमीर है कि उसने अच्छे कर्म किए हैं। इस व्याख्या ने हमारे मुल्क को विकास के परिवर्तन के समाज के ढांचे को बदलने की सारी संभावना समाप्त कर दी। हमने यह मान लिया कि गरीब इसलिए गरीब है कि उसने पाप किए, अमीर इसलिए अमीर है कि उसने पुण्य किए। तब फिर समाज की व्यवस्था को बदलने का कोई उपाय न रहा। क्योंकि गरीबी-अमीरी को हमने समाज की व्यवस्था से अलग करके व्यक्ति के कर्मों की अनंत व्यवस्था से जोड़ दिया। यह तरकीब बहुत कारगर साबित हुई। इसलिए हिंदुस्तान में दरिद्रों की तरफ से कोई क्रांति नहीं हो सकी। और आज भी नहीं हो पा रही है और कल भी संभावना कम दिखाई पड़ती है। जब तक कर्म-फल की इस भ्रांत धारणा से हम बंधे हैं तब तक हिंदुस्तान की सामाजिक ढांचे और रचना को बदलना मुश्किल है। मैं यह नहीं कहता हूं कि कर्म-फल नहीं होते, न मैं यह कहता हूं कि पिछले जन्म नहीं होते। लेकिन मैं यह कहना चाहता हूं कि संपत्ति का बंटवारा किन्हीं कर्म-फलों से संबंधित नहीं हैं। संपत्ति का बंटवारा सामाजिक व्यवस्था का बंटवारा है। संपत्ति का विभाजन सामाजिक ढांचे का विभाजन है। उसका कर्म-फलों से कोई संबंध नहीं। और यह भी मैं कहना चाहता हूं कि कर्म-फल एक-एक दो-दो जन्मों तक प्रतीक्षा नहीं करते हैं। अभी मैं आग में हाथ डालूंगा तो अगले जन्म में नहीं जलूंगा, अभी जल जाऊंगा। यह अगले जन्म तक प्रतीक्षा नहीं करेगी आग कि आप हाथ अभी डालिए और अगले जन्म में जलिएगा। Page 132 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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