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________________ भारत का भविष्य जीवन के नियम, कॉज़ेलिटी के नियम, कार्य-कारण के नियम तत्काल फल लाने वाले हैं। अगर मैं क्रोध करूंगा तो क्रोध की आग में अभी जल जाऊंगा, अभी दुख भोग लूंगा। अगर मैं प्रेम करूंगा तो प्रेम के आनंद की वर्षा अभी हो जाएगी, अभी मैं प्रेम के आनंद को भोग लूंगा। मैं जो भी कर रहा हूं, तत्क्षण, उसी क्षण, उसके साथ लगा हुआ फल है, अगले जन्म तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। लेकिन यह अगले जन्म की प्रतीक्षा का नियम क्यों खोजना पड़ा हमें? यह खोजना पड़ा गरीबी और अमीरी को समझाने के लिए। क्योंकि हमारे पास कोई उपाय न था । उपाय यह था, एक आदमी गरीब दिखाई पड़ता है और साथ यह भी दिखाई पड़ता है कि वह जो गरीब आदमी है, भला है, अच्छा है, ईमानदार है, साथ में यह भी दिखाई पड़ता है कि धनी है, सब कुछ है उसके पास लेकिन न ईमान है, न सच्चाई है। अब धार्मिक गुरु कैसे समझाए ? वह कहता था, अच्छे कर्मों का फल अच्छा मिलता है, बुरे कर्मों का फल बुरा मिलता है। अच्छे आदमी दुख में दिखाई पड़ते हैं, बुरे आदमी सुख में दिखाई पड़ते हैं। अब इसको कैसे समझाए ? इसको समझाने का एक ही रास्ता था, क्योंकि अगर अभी कर्म-फल मिलता है तो बुरे आदमी दुख भोगने चाहिए, अच्छे आदमी सुख भोगने चाहिए। वह दिखाई नहीं पड़ता। बुरे आदमी सुख में और अच्छे आदमी दुख में दिखाई पड़ते हैं। अब कैसे समझाए इसे ? एक ही रास्ता है, पिछले जन्मों से समझाओ। इस आदमी ने पिछले जन्म में बुरे कर्म किए होंगे, अभी अच्छे कर रहा है इसलिए दुख भोग रहा है क्योंकि यह पिछले जन्मों का कर्म फल है। अब यह अच्छे करेगा, अगले जन्म में अच्छे फल भोगेगा। अगले जन्मों का कोई ठिकाना नहीं है, कोई पता नहीं है। यह आदमी बुरा है, आज धन है, महल है, यह पिछले जन्मों के अच्छे कर्मों का फल है। अभी बुरे कर रहा है अगले जन्म में बुरे फल भोगेगा। सिवाय इसके हमारे पास कोई तरकीब न थी । लेकिन यह तरकीब बहुत महंगी पड़ गई। मैं आपसे कहना चाहता हूं: जन्म है, पुनर्जन्म है, कर्मों का फल है, लेकिन कर्मों का फल प्रतिक्षण उपलब्ध हो जाता है आगे के लिए शेष नहीं रहता। आप अभी बुरा करेंगे और आप पाएंगे कि सिर्फ उस बुराई के कारण सारे दुख झेल लिया, सारी पीड़ाएं झेल लीं। आप अभी भला करेंगे और पाएंगे कि भले के पीछे एक शांति की, एक आनंद की लहर दौड़ गई, उसका फल उपलब्ध हो गया है। आप हमेशा अपने कर्मों को करके फल भोग कर उनके बाहर निकल जाते हैं, अगले जन्मों तक प्रतीक्षा नहीं करनी पड़ती। इस दूसरे सिद्धांत ने – दरिद्रता और अमीरी को समझाने की व्यवस्था कर दी। और फिर जब व्यवस्था मिल गई, व्याख्या मिल गई, फिर जीवन को बदलने का कोई सवाल न रहा । हमने जीवन को स्वीकार कर लिया । अपने-अपने कर्म बदलने हैं जीवन और समाज को नहीं बदलना है। तीसरी बात, जिसने हमारे जीवन को और बुरी तरह ग्रस लिया, वह यह था कि हमने प्रत्येक व्यक्ति को व्यक्तिगत दृष्टि दी, सामाजिक दृष्टि, एक कलेक्टिव जीवन की सोचने की धारणा हमने विकसित नहीं की । हमने कहा, एक-एक आदमी के अपने-अपने कर्म फल हैं, अपना-अपना जीवन है, अपनी यात्रा है। दूसरे से कोई संबंध नहीं, दूसरे से कुछ लेना-देना नहीं । Page 133 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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