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________________ भारत का भविष्य हिसाबी - किताबी बनने उसको प्रेम को नष्ट किया । और सब भांति शिक्षित हो जाने के बाद पता चला कि शिक्षा केवल उसकी महत्वाकांक्षा की आग को प्रज्वलित कर दिया। वह विक्षिप्त हो गया । और जिन बच्चों की शिक्षा के लिए तीन सौ साल से विचारशील लोगों ने मेहनत की थी, वे बच्चे आज कह रहे हैं कि हम तुम्हारी यूनिवर्सिटीज को, तुम्हारे कालेजेज को जला देंगे। ये सब बेकार हैं। आज अमेरिका में यह हो रहा । अमेरिका सर्वाधिक सुशिक्षित हुआ है। इसलिए सर्वाधिक शिक्षा के जो दुष्परिणाम वहां प्रकट हुए। स्कूल जाने वाले बच्चे स्कूल छोड़ रहे हैं। जो ड्राप आउट है आज, स्कूल और विश्वविद्यालय को जो छोड़ कर जा रहा है, वह विद्रोही और बगावती है । और तीन सौ साल के सब विद्रोही और बगावती इस कोशिश में लगे थे कि हम कैसे सबको शिक्षित करें ? अब सब शिक्षित हो गए। कभी-कभी ऐसा लगता : नथिंग फैलस लाइक सक्सेस । सफल होते हैं तभी पता चलता है कि बुरी तरह असफल हो गए! तीन हजार साल से आदमी कोशिश कर रहा है कि हम सभी को कम से कम रोटी-रोजी तो जुटा दें। गरीबी बुरी है, कौन इनकार करेगा ? और दिक्कतें तब खड़ी होती हैं जिन चीजों को कोई इनकार नहीं करता। उन्हीं चीजों से झंझटें खड़ी होती जब कोई चीज जितनी ज्यादा ओब्विअस, सीधी-सीधी स्पष्ट मालूम पड़ती है, तो कोई इनकार नहीं करता। अब हमने गरीबी कुछ मुल्कों में मिटा दी, और हम पा रहे हैं कि गरीब इतनी मुसीबत में कभी भी न था जितनी मुसीबत में अमीर पड़ गया। और गरीबी की मुसीबत में भी एक सुविधा थी, आशा तो थी। गरीब सदा आशा से भरा हुआ है। आज नहीं कल एक मकान बना लेगा, आज नहीं कल एक बगीचा होगा, आज नहीं कल एक गाड़ी होगी, आज नहीं कल बच्चे होंगे, ऊपर उठ जाएंगे। जहां-जहां अमीरी आ गई, वहां-वहां आशा खो गई। धन के आने के साथ ही आशा खो जाती है। और आशा खोते ही गहन निराशा उतर आती है। आज जो पश्चिम में गहन निराशा है उस गहन निराशा का कारण है कि जिस वजह से आशा बनी रहती थी वह मिटा दी गई, वह गरीबी की वजह से थी। आशा थी इसलिए कि आपके पास कुछ नहीं था और आशा बनती थी कि कल होगा और सब ठीक हो जाएगा। जिससे आप सोचते थे वह सब ठीक हो जाएगा वह आज आपके पास है। और कुछ ठीक नहीं हुआ । तो भयंकर निराशा ! इतने बड़े जोर से आत्मघात हो रहा है, और जो नहीं आत्मघात कर रहे हैं वे भी करीब-करीब मुर्दा हालत में हैं। अभी पश्चिम का जो भी विचारशील व्यक्ति है, कम से कम धनी समाजों का, वह निराशा, दुख, संताप, अर्थहीनता, खालीपन उनकी बातें कर रहा है कि सब जिंदगी खाली हो जाए। गरीब की जिंदगी कभी खाली नहीं होती, बहुत भरी जिंदगी है। हालांकि उसके पास कुछ था नहीं। बड़ा मजा यह है, उसके पास कुछ था नहीं बिलकुल खाली है। मुट्ठी में उसके कुछ भी नहीं था लेकिन जिंदगी बड़ी भरी-पूरी है। गरीबी हमने मिटा दी, क्योंकि हमने माना कि बुरा है। बड़ी क्रांति हमने की। और जिनकी हमने गरीबी मिटा दी, अब वे खुद को मिटाने को तैयार हैं, क्योंकि कोई और उपाय नहीं दिखाई पड़ता अब किसको मिटाएं! यह मैं उदाहरण के लिए कह रहा हूं। करीब-करीब सारा मामला ऐसा है। संयुक्त परिवार था हमारे मुल्क में। सारी दुनिया में संयुक्त परिवार था । समाज सुधारकों ने कहा कि संयुक्त परिवार से उसमें व्यक्ति की स्वतंत्रता क्षीण हो जाएगी। सौ आदमी एक परिवार में हैं, तो स्वतंत्रता तो क्षीण होने वाली है। क्योंकि परिवार को चलाना है तो एक आदमी को तो प्रमुख होना पड़ेगा। स्वभावतः जो वृद्ध है, जो कमाने वाला है वह प्रमुख हो जाएगा। Page 112 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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