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________________ भारत का भविष्य फिर इस बड़े परिवार में छोटे बच्चे होंगे। गैर-कमाने वालों के भी बच्चे होंगे, उनकी प्रतिष्ठा भी कम होगी। गैर-कमाने वालों की पत्नी की भी प्रतिष्ठा कम होगी। इन सबकी तो कोई स्थिति होगी नहीं। तो किसी तरह परिधि पर चलते रहेंगे। और इनके विकास का अवसर नहीं मिलेगा। फिर यह भी कहा विचारशील लोगों ने कि जहां सौ लोग हैं वहां कुछ लोग गैर-कमाऊ हो ही जाएंगे। क्योंकि जब चलता ही है काम तो चला लिया जाए। इसलिए हम परिवार को बांटे। और व्यक्तिगत परिवार, ज्यादा प्रगतिशील परिवार होगा। यह ठीक ही बात थी कि जितना छोटा परिवार होगा, जितना छोटा यूनिट होगा उतना संगठित भी होगा, उतना प्रत्येक व्यक्ति उत्तरदायी भी होगा। और उतना निकटता होने की वजह से, पति है, पत्नी है, बेटे, बच्चे हैं उनकी की जा सकेगी। ज्यादा फिक्र की जा सकेगी। और यह कमाने में भी ज्यादा उपयोगी होगा। लेकिन किसी को खयाल में नहीं आया कि जहां-जहां संयुक्त-परिवार टूटा; वहां अब परिवार भी टूट रहा है। जहां-जहां ज्वाइंट-फेमिली खत्म हुइ], वहां जिसको न्युकिलियस हैं अब, इस फेमिली को, ये भी टूट रही हैं। ये टूटेगी। इसका कारण यह है, यह वैसे ही टूटेगी क्योंकि यह जो पूरा बड़ा मकान है हमारा, इसमें हमने सब कमरे गिरा दिए और एक कमरा बचा लिया, यह कमरा बच नहीं सकता, क्योंकि इस कमरे को बचाने के लिए वे सारे कमरे जो थे सहारा थे। और फिर जब एक दफा तय हो गया कि जितना छोटा परिवार होगा उतना प्रोग्रेसिव होगा, तो आखिर में पति-पत्नी भी इकट्ठ क्यों हों? तो ठीक यूनिटरी फेमिली हो जाएगी, कि एक व्यक्ति अपने को सम्हाल ले, बात खत्म हो गई। वह जो इतना बड़ा परिवार था, वह चीजों को संभालता था। असल में छोटे संबंध जो हैं बड़े संबंधों के बीच में ही फलित होते हैं। अगर मैं अपने काका के लड़के से भाईचारा नहीं निभा सकता, तो मैं अपने भाई से ज्यादा दिन नहीं निभा पाऊंगा। और अगर मैं अपने काका और अपने मामा और दूर के काका और दूर के मामा से भी भाईचारा निभा पाता हूं उनके लड़कों से, तो मेरे भाई से जो मेरा भाईचारा है वह गहरा रहेगा। जब हम परिधि को तोड़ते चले जाते हैं तो नीचे सरक आते हैं और जाकर के खत्म हो जाते हैं। सारी कठिनाई जो है...। स्त्रियों ने भी बगावत की पश्चिम में और उन्होंने कहा कि बड़ा संयुक्त-परिवार जो है स्त्रियों के बहुत खिलाफ है। क्योंकि स्त्री की कोई प्रतिष्ठा ही नहीं रह जाती थी। प्रतिष्ठा का सवाल नहीं; पति अपनी पत्नी से मिल भी नहीं सकता रोशनी में सबके सामने। बाप अपने बेटे को कंधे पर भी नहीं रख सकता था। उसके बेटे को कंधे पर रखना बेहूदगी थी जब कि घर में और बड़े बुजुर्ग हैं। तो अपने बेटे से बोल भी नहीं सकता था ठीक। रात के अंधेरे में वह अपनी पत्नी से मिल लेता था, उसका चेहरा भी कई दफा पति वर्षों तक नहीं देख पाता था। लेकिन निश्चित ही यह लगा स्त्रियों को कि बुरा है तो एक क्रांति सारी दुनिया में हुई कि इसको तोड़ो। लेकिन बड़े मजे की बात यह है कि पति-पत्नी जब इतने बड़े परिवार में रह रहे थे तो पति-पत्नी के बीच बहत कम कलह होती थी, क्योंकि कलह के दूसरे उपाय थे। वह जो कलह थी वह पति-पत्नी के बीच बहुत कम होती थी, वह न के बराबर। प्रेम ज्यादा सघन था उनके बीच, मैत्री ज्यादा सघन थी। क्योंकि कलह करने को और लोग भी थे, और पत्नियां थीं भाइयों की, उनसे भी कलह चलती थी पत्नी की। और तब उस सारी कलह में भी दोनों मित्र हो पाते थे। Page 113 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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