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________________ भारत का भविष्य इतनी व्यवस्था की मंच होगी कि आंख ठीक उस एंगल पर रहे जहां से सजेस्टिबल हो जाता है आदमी का माइंड | प्रीजमेंट था। यह तो पूरा, हिटलर का तो पूरा प्रीजमेंट था। हिटलर तो प्रोपेगेंडाइज्म में जितना भी उपयोग किया जा सकता है, व्यवस्थित सारी बातों का, किया है। और हिटलर तो इसका पूरा जान कर उपयोग किया है। मैंने कहा कि नेहरू जान कर उपयोग नहीं किए, नेहरू को पता भी नहीं हो सकता। लेकिन इससे फर्क नहीं पड़ता । सातवां प्रवचन भारत का भविष्य व्यक्ति के अतिरिक्त और कोई जगह है नहीं। समाज और झूठ, जो बड़े से बड़ा झूठ है। समाज का झूठ दिखाई नहीं पड़ता। लगता ऐसा है कि वही सत्य है, और व्यक्ति तो कुछ भी नहीं । झूठ अगर बहुत पुराना हो, पीढ़ी दर पीढ़ी, लाखों साल में हमने उसे स्थापित किया हो, तो खयाल में नहीं आता। लेकिन खयाल में आना शुरू हुआ है और दुनिया को यह धीरे-धीरे रोज अनुभव होता जा रहा है कि समाज के नाम से की गई कोई भी क्रांति सफल नहीं हुई। और समाज के नाम से हमने जो भी आज तक किया है उससे हमारी मुसीबत समाप्त नहीं हुई। मुसीबत बदल गई हो यह हो सकता है। एक मुसीबत छोड़ कर हमने दूसरी मुसीबत पाली, यह तो हुआ है, मुसीबत समाप्त नहीं हो सकी। मेरी तो दृष्टि ऐसी है कि सामाजिक क्रांति असंभावना है। और जब मैं ऐसा कहता हूं असंभावना है तो मेरा मतलब यह है कि आप सिर्फ धोखा खड़ा करते हैं । अब जैसे उदाहरण के लिए, मनुष्य के इतिहास में जितने लोगों ने की, समाज को ध्यान में रख कर मेहनत की है, उनकी मेहनत बिलकुल ही असफल हुई । न केवल असफल हुई बल्कि घातक भी सिद्ध हुई । अब जैसे, कभी सोच भी नहीं सकते थे हम आज से तीन सौ साल पहले, इन तीन सौ सालों में दुनिया के सभी विचारशील लोगों ने चाहा कि प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित हो जाए, इतनी तो सामाजिक क्रांति जरूरी है। इसे कोई भी बुरा नहीं कह सकता । युनिवर्सल एजुकेशन हो। इसे कौन बुरा कहेगा ? तो इमर्सल से लेकर रसल तक सारे लोग इस पर मेहनत किए कि प्रत्येक व्यक्ति शिक्षित हो जाए। और मजा यह है कि जब हम सफल हुए और जिन मुल्कों में हमने शिक्षा पूरी फैला दी, हम वहां पा रहे हैं कि जो परिणाम हुए हैं शिक्षा के, वे अशिक्षा से कभी भी नहीं हुए हैं। सोचते थे कि शिक्षित आदमी हो जाएगा तो जिंदगी ज्यादा शांत, ज्यादा आनंदपूर्ण, ज्यादा सरल, सहज, संबंध ज्यादा मधुर और प्रीतिकर हो जाएंगे, हुआ तो नहीं, हुआ उलटा। शिक्षा से आदमी ज्यादा सरल नहीं हुआ, ज्यादा चालाक और ज्यादा शैतान हुआ। और शिक्षा से वह ज्यादा प्रेमपूर्ण भी नहीं हुआ, बल्कि ज्यादा कैलकुलेटिड और ज्यादा हिसाबी - किताबी हो गया । और उसके Page 111 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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