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________________ भारत का भविष्य रीजन है। उस रीजन में क्या है? भगवान की हत्या हो तो हो जाए, मंदिर जलता हो जल जाए, मूर्ति टूटती हो टूट जाए, शास्त्र फिंकता हो फिंक जाए। मैं पहली तो गुडनेस यह मानता हूं कि रीजन होना चाहिए। वह जो प्रीस्ट कह रहा है आपसे गुडनेस, वह कह रहा है कि इररीजन। वह यह नहीं कह रहा आपसे कि रीजन, वह यह कह रहा है कि मरियम को कुंआरी मानो। यह बहुत अच्छे आदमी का लक्षण है। जो शक करता है वह बहुत गड़बड़ आदमी है। वह जो गुडनेस सीखा रहा है वह गुडनेस नहीं है, वह धोखा है गुडनेस का। दुनिया में गुडनेस आएगी, उसके पहले रीजन आना जरूरी है, नहीं तो नहीं आ सकती।। तो मेरे और प्रीस्ट में बुनियादी फर्क है। मैं प्रीस्ट हूं ही नहीं। यानी मुझसे ज्यादा एंटी-प्रीस्ट कोई आदमी हो नहीं सकता। न तो मैं कोई मंदिर खड़ा कर रहा हूं, न कोई प्रीस्ट खड़ा कर रहा हूं, न भगवान और आदमी के बीच किसी दलाल को स्वीकार कर रहा हूं, न किसी शास्त्र को स्वीकार करता हूं, न मेरी किताब को शास्त्र कहता हूं, न यह कहता हूं कि जो मैं कह रहा हूं वह सत्य है, इतना ही कहता हूं कि मुझे सत्य दिखाई पड़ता है और जब तक तुम्हारे रीजन को सत्य न लगे तब तक दो कौड़ी का है, उसको तुम स्वीकार करना मत। यानी कि आखिर हम तोड़ कैसे सकते हैं? आखिर दुसरे व्यक्ति से कम्यनिकेशन का रास्ता कहने के सिवाय क्या है? अब मेरे पास लोग आते हैं, वे आकर मुझसे कहेंगे कि आप आशीर्वाद दे दें। मैं उनको कहता हूं, आशीर्वाद से कुछ भी नहीं होगा। और तुम इस भ्रम में रहना मत कि मेरे आशीर्वाद से कुछ होने वाला है। तुम मेरे पैर छूते हो तुम सिर्फ कवायद कर रहे हो। तुम इस खयाल में रहना मत कि मेरे पैर छूने से तुम्हें कुछ हो जाए। अब मैं कर क्या सकता हूं? यह जो तीन-चार हजार वर्ष की कंडीशनिंग है, तो वह कंडीशनिंग को तोड़ने के लिए हमें कहीं-कहीं चोट करनी पड़ती है, और कर क्या सकते हैं? लेकिन चोट हमें बेरहमी से करनी चाहिए। चोट हम नहीं कर पाते जब हम धोखा देते हैं। जब मैं यह कहूं कि तुम दूसरों के पैर को मत छूना वह कवायद है और मैं कहूं मेरे पैर छूना यह बहुत धार्मिक कृत्य है, तब मुश्किल खड़ी हो जाती है। और वही होता रहा है। दुनिया में अब तक एक प्रीस्ट के खिलाफ दूसरा प्रीस्ट रहा है। प्रीस्टहुड के खिलाफ कोई नहीं रहा है। जो आज तक की स्थिति है वह यह है। एक पुरोहित के खिलाफ दूसरा पुरोहित है। वह कहता है, वह पुरोहित गलत है, पुरोहित मैं सही हूं। लेकिन पुरोहितवाद सही है। वह कहता है, महावीर गलत हैं, राम सही हैं। वह कहता है कि बुद्ध गलत हैं, महावीर सही हैं। लेकिन वह यह नहीं कहता कि पुरोहितवाद गलत है, यह भगवानवाद गलत है। तो मेरी बुनियादी फर्क है। मैं कोई नये धर्म को खड़े करने के पक्ष में नहीं हूं। मैं कहता हूं कि धर्मो का खड़ा होना गलत है। मैं यह नहीं कहता कि यह राम की मूर्ति गलत है और बुद्ध की मूर्ति गलत है और मेरी मूर्ति सही है। मैं यह कहता हूं, यह मूर्तिवाद गलत है। तो इन सारी बातों में बुनियादी फर्क समझना जरूरी है। और वह सिवाय समझाने के हम कर क्या सकते हैं। लेकिन मेरी समझ यह है कि अगर हम ठीक बात समझाने के प्रयास करें और हमारे स्वार्थ न हों उसमें, तो ठीक बात लोगों के हृदय तक पहुंचती है। ठीक बात तभी नहीं पहुंचती जब ठीक बात के पीछे हमारा कोई बहुत बुनियादी स्वार्थ जुड़ा होता है। अगर मेरा कोई स्वार्थ है इस बात में, तो बहुत जल्दी आप मेरे स्वार्थ को पहचान जाएंगे और ठीक बात गौण हो जाएगी, और आप समझ जाएंगे कि वह Page 105 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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