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भारत का भविष्य
सब ठीक बातचीत काम की बातचीत है, जिससे कोई स्वार्थ है। कोई भी स्वार्थ, इतना भी स्वार्थ कि लोग मुझे आदर दें, तो भी फिर सत्य मैं नहीं पहुंचा सकता हूं, उतना स्वार्थ भी, सत्य नहीं पहुंचाया जा सकता है। तो मझे, यानी मेरे साथ तो इतनी कठिनाई हो गई। अभी यह सब मामला चला तो मुझे कितने पत्र गए कि हम तो आपके शिष्य थे और हमारी श्रद्धा तो बड़ी चोट पहुंची। तो मैंने उनको लिखा कि तुम मुझसे बिना ही पूछे मेरे शिष्य थे कैसे? मैं कभी किसी का गुरु बना नहीं। और निरंतर कह रहा हूं कि किसी को किसी का शिष्य बनना पाप है। तुम मेरे शिष्य बन कैसे गए? तुम शिष्य थे तो तुम भी गलती कर रहे थे और अनजाने मुझको भी पाप में घसीट रहे थे। यह अच्छा हुआ कि मेरी बातचीत से तुम्हारा शिष्यत्व चला गया, तुम मुझसे मुक्त हो गए। यह बहुत ही अच्छा हुआ। अब तक होता क्या रहा है कि एक गुरु दूसरे गुरुओं से छीनने की कोशिश करता है, लेकिन अपनी गुरुडम खड़ी करने की चेष्टा करता है। तो गुरुडम नहीं मिटती, गुरु बदलते रहते हैं। उससे कोई फर्क पड़ता नहीं बहुत। जो आदमी दूसरे मंदिर में जाता था, वह दूसरे मंदिर में वही बेवकूफी करता है जाकर। क्रिश्चिएन चर्च में जाता था तो हिंदू मंदिर में जाने लगता है, हिंदू मंदिर में जाता था तो मस्जिद में जाने लगता है। लेकिन बेसिक नानसेंस जारी रहती है, उसमें कोई फर्क नहीं पड़ता। मेरा कहना यह है कि हमें बुनियादी गुरुडम तोड़ देनी है। दुनिया में गुरु की जरूरत नहीं है। और इधर मैंने कहना शुरू किया कि आध्यात्मिक जीवन में गुरु से ज्यादा खतरनाक कंसेप्ट दूसरा नहीं है। परमात्मा और आदमी के बीच किसी गुरु को खड़े होने की जरूरत नहीं है। और कोई खड़ा होता है तो वह आदमी को परमात्मा तक जाने से रोकता है या सत्य तक जाने से रोकता
(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)
हां-हां, इररेशनल एलिमेंट हैं। लेकिन उन सबको रेशनल बनाया जा सकता है। और जब तक हम नहीं बनाते हैं तब तक आदमी अच्छा आदमी नहीं हो सकता। फ्रायड की मैं बात मानता हूं।
(प्रश्न का ध्वनि-मुद्रण स्पष्ट नहीं।)
इसका मतलब यह है, इसका मतलब यह है कि रेशनेलिटी पांच हजार साल पुरानी है, मेरी बात पांच साल पुरानी है, इसका और क्या मतलब है? मेरे जैसे लोग खड़े होते रहेंगे और तोड़ते रहेंगे तो पांच हजार साल में रेशनेलिटी को हम तोड़ देंगे। यह तो मामला ऐसा है कि एक डाक्टर आपको दवा देता है और आप फ्लू को चलाए चले जाते हैं। उसका मतलब कुल इतना है कि दवा अभी फ्लू के लायक मजबूती से काम नहीं कर पा रही। उतनी मजबूत नहीं है। उतने जोर से नहीं दी जा रही। लेकिन फ्लू टूटेगा, विश्वास हमारा यह है कि बीमारी टूटेगी दवा जीतेगी। इसी विश्वास से आदमी जीता है। और कोई सारे समाज की क्रांति चलती है।
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