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________________ भारत का भविष्य एक कारण तो किसी फिलासफी की वैज्ञानिकता की परीक्षा ही तब होती है जब अनुयायी उसको इंप्लीमेंटेशन करते हैं। उसके पहले तो उसकी परीक्षा भी नहीं होती। हवा में तो सभी चीजें ठीक मालूम होती हैं। हवा में कोई दिक्कत नहीं है। एक्सप्रेस थिंकिंग में तो सभी चीजें ठीक हो सकती हैं क्योंकि सिर्फ आर्ग्युमेंट और लाजिक की बात है। हर विजिटल बात है। लेकिन जब आप इसको व्यावहारिक रूप से इंप्लीमेंट करते हैं, तभी पता चलता है कि वह इंप्लीमेंट हो सकती है कि नहीं हो सकती। इसलिए असली कठिनाई तो हमेशा इंप्लीमेंटेशन वाले के सामने खड़ी होती है। और उसमें हमेशा परेशानी हुई है क्योंकि आकाश से जमीन तक उतारने में बहुत दिक्कतें होती हैं, एक बात । दूसरी बात, अनुयायी जो है, अनुयायी जो है अगर वह एक भावनागत प्रभाव से किसी चीज से प्रभावित 'हुआ है तो एक स्थिति होगी, और लाजिकल, रेशनल और बुद्धिमत्ता से प्रभावित हुआ तो बिलकुल दूसरी बात होगी। गांधी जैसे व्यक्तियों का प्रभाव भावनागत ज्यादा होता है, विचारगत कम । मार्क्स जैसे व्यक्तियों का प्रभाव विचारगत ज्यादा होता है, भावनागत कम । मेरा मतलब, मेरा मतलब जो मैं कह रहा हूं। .... (प्रश्न का ध्वनिमुद्रण स्पष्ट नहीं।) मैं आपको बात कहता हूं, मैं आपको बात करता हूं, मैं आपको बात करता हूं कि अगर मेरा कोई पैर छूता है आकर, मेरी जितनी विचारधारा है, जितनी ज्यादा से ज्यादा तर्कयुक्त हो सकती है उतनी मैं उसे तर्कयुक्त बनाने की कोशिश करता हूं। विचारधारा मेरी जो है, मेरी विचारधारा से जो प्रभावित होगा, वह एक बात है। जो इस मुल्क की धारा है हमेशा से, एक संन्यासी से साधु से प्रभावित होने की, वह बिलकुल दूसरी बात है। लेकिन जो आदमी मेरे पैर छूने भी आएगा, वह भी अगर आता ही रहा तो बहुत जल्दी उसको समझ में आ आएगा कि पैर छूना निरर्थक है उसका कोई उपयोग नहीं। इसलिए मैं उसे रोकता भी नहीं। क्योंकि जो मैं कह रहा हूं चौबीस घंटे, वह उस तरह की सारी बातों के प्रतिकूल है। मैं कोई भावनागत ब उसमें फैलाना नहीं चाह रहा हूं, कोई इमोशनल बात पैदा करना नहीं चाह रहा हूं। मेरी चेष्टा तो निरंतर एक बौद्धिक-क्रांति की है। अब अगर इतनी बौद्धिक- क्रांति की बातें सुन कर भी वह पैर छूने आता है तो वह पैर छूना उसकी कंडीशनिंग का हिस्सा है, जो हजारों साल की कंडीशनिंग है। तो मेरी दृष्टि यह है कि अगर वह विचार करना सीखता है मेरे साथ तो बहुत जल्दी इस तरह की भावनाओं से मुक्त हो जाएगा। हो जाना चाहिए। मैं उसको कोई बढ़ावा नहीं देता हूं। क्योंकि मैं जो भी कह रहा हूं वह बिलकुल प्रतिकूल है। दुनिया में जो आइडियालॉजीस हैं अगर वे वैज्ञानिक हैं, तर्कबद्ध हैं, तर्कशुद्ध हैं तो उनके इंप्लीमेंटेशन में कठिनाई नहीं होगी। लेकिन अगर वे काल्पनिक हैं, उटोपियन हैं और बेसिकली उनमें कोई विज्ञान की बात नहीं है, तो उनके इंप्लीमेंटेशन में तकलीफ होती है। गांधी की विचारधारा की इंप्लीमेंटेशन में तकलीफ होगी, क्योंकि वह तर्कशुद्ध नहीं है और न वैज्ञानिक है। काल्पनिक है, भावनापूर्ण है । वह भाव बहुत अच्छा है कि पूंजीपति राजी हो जाए, ट्रस्टी बन जाए। लेकिन यह विज्ञान सम्मत नहीं है यह बात, यह होने वाला नहीं है, यह होने वाला नहीं है । तो यह गांधी की अनुयायी की जो Page 103 of 197 http://www.oshoworld.com
SR No.100002
Book TitleBharat ka Bhavishya
Original Sutra AuthorN/A
AuthorOsho Rajnish
PublisherOsho Rajnish
Publication Year
Total Pages197
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size2 MB
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