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________________ आत्म-कथा : भाग १ लिये । नारायण हेमचंद्र तो ज्यों-के-त्यों, सनातन ! वही कोट और वही पतलून । मैंने जरा मजाक किया, पर उन्होंने उसे साफ हंसीमें उड़ा दिया और बोले---- "तुम सब सुधारप्रिय लोग डरपोक हो। महापुरुष किसीकी पोशाककी तरफ नहीं देखते। वे तो उसके हृदयको देखते हैं ।” कार्डिनलके महल में हमने प्रवेश किया। मकान महल ही था। हम बैठे ही थे कि एक दुबलेसे ऊंचे कदवाले वृद्ध पुरुषने प्रवेश किया। हम दोनोंसे हाथ मिलाया। उन्होंने नारायण हेमचंद्रका स्वागत किया । “मैं आपका अधिक समय लेना नहीं चाहता। मैंने आपकी कीर्ति सुन रक्खी थी। आपने हड़ताल में जो शुभ काम किया है, उसके लिए आपका उपकार मानना था। संसारके साधु पुरुषोंके दर्शन करनेका मेरा अपना रिवाज है। इसलिए आपको आज यह कष्ट दिया है।" इन वाक्योंका तरजुमा करके उन्हें सुनानेके लिए हेमचंद्रने मुझसे कहा। "अापके आगमनमे में बड़ा प्रसन्न हुआ हूं। मैं आशा करता हूं कि आपको यहाँका निवास अनुकूल होगा, और यहांके लोगोंमे आप अधिक परिचय करेंगे। परमात्मा आपका भला करें।" यों कहकर कार्डिनल उठ खड़े हए। एक दिन नारायण हेमचंद्र मेरे यहां धोती और कुरता पहनकर आये । भली मकान-मालकिनने दरवाजा खोला और देखा तो डर गई । दौड़कर मेरे पास आई (पाठक यह तो जानते ही हैं कि मैं बार-बार मकान बदलता ही रहता था) और बोली-- "एक पागल-सा आदमी आपमे मिलना चाहता है।" मैं दरवाजेपर गया और नागयण हेमचंद्र को देखकर दंग रह गया। उनके चेहरेपर वही नित्यका हास्य चमक रहा था । " पर आपको लड़कोंने नहीं सताया ? " " हां, मेरे पीछे पड़े जरूर थे, लेकिन मैंने कोई ध्यान नहीं दिया, तो वापस लौट गये ।" नारायण हेमचंद्र कुछ महीने इंग्लंडमें रहकर पेरिस चले गये । यहां फच का अध्ययन किया और फच पुस्तकों का अनुवाद करना शुरू कर दिया। में इतनी फच जान गया था कि उनके अनजानको जांच लं । मैंने देखा कि वह तर्जमा नहीं, भावार्थ था ।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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