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________________ अध्याय १७ : भोजनके प्रयोग बारीकीसे जब मैंने खोज की तो पता लगा कि अन्नाहारवाले भोजनालयोंमें भी बहुतसी चीजें ऐसी बना करती थीं, जिनमें अंडे पड़ा करते थे। फलतः यहां भी परोसने. वालेसे पूछ-ताछ करना मेरे नसीबमें बता रहा, जबतक कि मैं खूब वाकिफ न हो गया था; क्योंकि बहुतेरे पुडिंग और केकमें अंडे जरूर ही रहते हैं। इस कारण एक तरहसेतो मैं जंजालसे छूट गया; क्योंकि फिर तो मैं बिलकुल सादी और मामूली चीजें ही ले सकता था। हां, दूसरी तरफ दिलको कुछ धक्का अलबत्ता लगा, क्योंकि ऐसी कितनी ही वस्तुएं छोड़नी पड़ीं, जिनका स्वाद जीभको लग गया था। पर यह धक्का क्षणिक था। प्रतिज्ञा-पालनका स्वच्छ, सूक्ष्म और स्थायी स्वाद मुझे उस क्षणिक स्वादसे अधिक प्रिय मालूम हुआ । परंतु सच्ची परीक्षा तो अभी आगे आनेवाली थी, उसका संबंध था दूसरे व्रतसे । परंतु-- 'जाको राखे साइयां मार सके ना कोय । ___इस प्रकरणको पूरा करने के पहले प्रतिज्ञाके अर्थके संबंधमें कुछ कहना जरूरी है। मेरी प्रतिज्ञा मातासे किया हुआ एक इकरार था। दुनियामें बहुतेरे झगड़े इकरारोंके अर्थकी खींचातानीसे पैदा होते हैं। आप चाहे कितनी ही स्पष्ट भाषामें इकरारनामा लिखिए, फिर भी भाषा-शास्त्री उसे तोड़-मरोड़कर अपने मतलबका अर्थ निकाल ही लेंगे। इसमें सभ्यासभ्यका भेद नहीं रहता। स्वार्थ सबको अंधा बना डालता है। राजासे लेकर रंकतक इकरारोंके अर्थ अपने मनके मुसाफिक लगाकर दुनियाको, अपनेको और ईश्वरको धोखा देते हैं । इस प्रकार जिस शब्द अथवा वाक्यका अर्थ लोग अपने मतलबका लगाते हैं उसे न्यायाशास्त्र 'द्विअर्थी मध्यमपद' कहता है। ऐसी दशामें स्वर्ण-न्याय तो यह है कि प्रतिपक्षीने हमारी बातका जो अर्थ समझा हो वही ठीक समझना चाहिए, हमारे मनमें जो अर्थ रहा हो वह झूठा और अधूरा समझना चाहिए। और ऐसा दूसरा स्वर्णन्याय यह है कि जहां दो अर्थ निकलते हों वहां वह अर्थ ठीक मानना चाहिए, जिसे कमजोर पक्ष ठीक समझता हो। इन दो स्वर्ण-मार्गोंपर न चलनेके कारण ही बहुत-कुछ झगड़े होते हैं और अधर्म चला करता है। और इस अन्यायकी जड़ है असत्य । जो सत्यके ही रास्ते चलना चाहता है, उसे स्वर्ण-मार्ग सहज ही प्राप्त हो जाता है। उसे शास्त्रोंकी पोथियां नहीं उलटनी पड़तीं। माताजीने मांस
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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