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________________ ५०० आत्म-कथा : भाग ५ रेल में तैयार किया । इस समयतक मेरे मसविदोंमें शांतिमय शब्द प्रायः नहीं श्राता था । मैं अपने भाषणोंमें उसका उपयोग करता था। लेकिन जहां केले मुसलमान भाइयोंकी सभा होती वहां शांतिमय शब्दसे मैं जो कुछ समझाना चाहता, समझा नहीं सकता था; इसलिए मैंने मौलाना अबुलकलाम श्राजादसे इसके लिए दूसरे शब्द पूछे। उन्होंने 'बाश्रमन' शब्द बतलाया और असहयोगके लिए 'तर्फे मवालात' शब्द सुझाया । इस तरह जब गुजरातीमें, हिंदी में, हिंदुस्तानी में सहयोग की भाषा मेरे दिमाग में तैयार हो रही थी उसी समय, जैसा कि मैं ऊपर कह चुका हूं, कांग्रेसके लिए एक प्रस्ताव तैयार करनेका काम मेरे जिम्मे आया । उस प्रस्तावमें 'शांतिमय' शब्द नहीं या पाया था । प्रस्ताव तैयार कर चुकनेपर ट्रेनमें ही मैंने उसे मौलाना शौकतअली के हवाले कर दिया था । रातमें मुझे खयाल आया कि खास शब्द 'शांतिमय' तो प्रस्तावके मसविदेमेंसे छूट गया है । मैंने महादेवको उसी समय जल्दी से भेजा और कहलवाया कि छापने के पहले उसमें 'शांतिमय' शब्द भी जोड़ दिया जाय । मुझे याद आ रहा है कि इस शब्दके जुड़नेके पहले ही प्रस्ताव छप चुका था । उसी रातको विषय समिति की बैठक थी, इसलिए बादमें मुझे मसविदे में 'शांतिमय' शब्द जोड़ना पड़ा। साथ ही मैंने यह भी महसूस किया कि अगर मैंने पहलेसे ही प्रस्ताव तैयार न कर लिया होता तो बड़ी कठिनाई होती । तिसपर भी मेरी हालत तो दयाजनक ही थी। मुझे इस बातका पता भी नहीं था कि कौन तो मेरे प्रस्तावको पसंद करेंगे और कौन उसके विशेषमें बोलेंगे। मुझे इस बात का भी विलकुल पता न था कि लालाजीका झुकाव किस तरफ है । कलकत्ते में पुराने अनुभवी योद्धागण एकत्र हुए थे । विदुषी एनी बेसेंट, पंडित मालवीयजी, विजयराघवाचार्य, पंडित मोतीलालजी, देशबंधु वगैरा नेता उनमें मुख्य थे । मेरे प्रस्तावमें खिलाफत और पंजाबके ग्रन्यायोंको लेकर ही असहयोग करने की बात कही गई थी। श्री विजयराघवाचार्यको इतनेसे संतोष न हुआ । उनका कहना था, "अगर असहयोग करना है तो फिर किसी खास अन्याय को लेकर ही क्यों किया जाय ? स्वराज्यका प्रभाव तो बड़े-से-बड़ा अन्याय है, इसे लेकर
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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