________________
अध्याय १० : धर्मको झलक
३
धर्मकी झलक
छ:-सात सालकी उम्रसे लेकर १६ वर्षतक विद्याध्ययन किया; परंतु स्कूलमें कहीं धर्म-शिक्षा न मिली । जो चीज शिक्षकोंके पाससे सहज ही मिलनी चाहिए, वह न मिली। फिर भी वायुमंडलमेंसे तो कुछ-न-कुछ धर्म-प्रेरणा मिला ही करती थी। यहां धर्मका व्यापक अर्थ करना चाहिए। धर्मसे मेरा अभिप्राय है आत्मभानसे, आत्मज्ञानसे ।
वैष्णव-संप्रदायमें जन्म होनेके कारण बार-बार 'वैष्णव-मंदिर' जाना होता था। परंतु उसके प्रति श्रद्धा न उत्पन्न हुई। मंदिरका वैभव मुझे पसंद न आया। मंदिरोंमें होनेवाले अनाचारोंकी बातें सुन-सुनकर मेरा मन उनके संबंधमें उदासीन हो गया। वहांसे मुझे कोई लाभ न मिला।।
परंतु जो चीज मुझे इस मंदिरसे न मिली, वह अपनी दाईके पाससे मिल गई। वह हमारे कुटुंबमें एक पुरानी नौकरानी थी। उसका प्रेम मुझे आज भी याद आता है । मैं पहले कह चुका हूं कि मैं भूत-प्रेत आदिसे डरा करता था। इस रंभाने मुझे बताया कि इसकी दवा 'राम-नाम' है। किंतु राम-नामंकी अपेक्षा रंभापर मेरी अधिक श्रद्धा थी। इसलिए बचपन में मैंने भूत-प्रेतादिसे बचने के लिए राम-नामका जप शुरू किया। यह सिलसिला यों बहुत दिनतक जारी न रहा; परंतु जो बीजारोपण बचपनमें हुया वह व्यर्थ न गया। राम-नाम जो आज मेरे लिए एक अमोघ शक्ति हो गया है, उसका कारण यह रंभाबाई का बोया हुआ बीजही है।
___मेरे चचेरे भाई रामायण के भक्त थे। इसी अर्से में उन्होंने हम दोभाइयोंको 'राम-रक्षा'का पाठ सिखानेका प्रबंध किया। हमने उसे मुखाग्र करके प्रातःकाल स्नानके बाद पाठ करनेका नियम बनाया। जबतक पोरवंदरमें रहे, तबतक तो यह निभता रहा। परंतु राजकोट के बाजावरणम उसमें शिथिलता आ गई।