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________________ अध्याय १६ : उज्ज्वल पक्ष "दिन बढ़ता जा रहा था। जब हजारों लोगोंकी कहानियां लिखी गईं तो भला इसका असर हुए बिना कैसे रह सकता था ? मेरे मुकामपर लोगोंकी ज्यों-ज्यों आमदरफ्त बढ़ती गई त्यों-त्यों निलहे लोगोंका क्रोध भी बढ़ता चला। मेरी जांच बंद करानेकी कोशिशें उनकी ओरसे दिन-दिन अधिकाधिक होने लगीं। एक दिन मुझे बिहार सरकारका पत्र मिला, जिसका भावार्थ यह था, "आपकी जांचमें काफी दिन लग गये हैं और आपको अब अपना काम खतम करके विहार छोड़ देना चाहिए।" पत्र यद्यपि सौजन्यसे युक्त था; परंतु उसका अर्थ स्पष्ट था । मैंने लिखा-- “जांचमें तो अभी और दिन लगेंगे, और जांचके बाद भी जबतक लोगोंका दुःख दूर न होगा मेरा इरादा विहार छोड़नेका नहीं है ।" मेरी जांच बंद करनेका एक ही अच्छा इलाज सरकारके पास था। लोगोंकी शिकायतोंको सच मानकर उन्हें दूर करना अथवा उनकी शिकायतोंपर ध्यान देकर अपनी तरफसे एक जांच-समिति नियुक्त कर देना । गवर्नर सर एडवर्ड गेटने मुझे बुलाया और कहा कि मैं जांच-समिति नियुक्त करनेके लिए तैयार हूं और उसका सदस्य बननेके लिए उन्होंने मुझे निमन्त्रण दिया। दूसरे सदस्योंके नाम देखकर और अपने साथियोंसे सलाह करके इस शर्तपर मैंने सदस्य होना स्वीकार किया कि मुझे अपने साथियोंके साथ सलाह-मशविरा करनेकी छुट्टी रहनी चाहिए और सरकारको समझ लेना चाहिए कि सदस्य बन जानेसे किसानोंका हिमायती रहनेका मेरा अधिकार नहीं जाता रहेगा, एवं जांच होने के बाद यदि मुझे संतोष न हो तो किसानोंकी रहनुमाई करने की मेरी स्वतंत्रता जाती न रहे । सर एडवर्ड गेटने इन शर्तोंको वाजिब समझकर मंजूर किया। स्वर्गीय सर फेक स्लाई उसके अध्यक्ष बनाये गये। जांच-समितिने किसानोंकी तमाम शिकायतोंको सच्चा बताया और यह सिफारिश की कि निलहे लोग अनुचित रीतिसे पाये रुपयोंका कुछ भाग वापस दें और 'तीन कठिया' का कायदा रद किया जाय । ___ इस रिपोर्ट के सांगोपांग तैयार होने में और अंतको कानून पास कराने में सर एडवर्ड गेटका बड़ा हाथ था। वह यदि मजबूत न रहे होते और पूरी-पूरी कुशलतासे काम न लिया होता तो जो रिपोर्ट एक मतसे लिखी गई, वह नहीं
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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