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________________ ४३० आत्म-कथा : भाग ५ दिलावें तो मैं रोज नहाने और कपड़े धोने और बदलने के लिए तैयार हूं।" ऐसे झोंपड़े हिंदुस्तान में इने-गिने नहीं हैं । असंख्य झोंपड़े ऐसे मिलेंगे जिनमें साजसामान, संदूक -पिटारा, कपड़े-लत्ते नहीं होते और असंख्य लोग उन्हीं कपड़ोंपर अपनी जिंदगी निकालते हैं जो वे पहने होते हैं । एक दूसरा अनुभव भी लिखने लायक है। चंपारनमें बांस और घासकी कमी नहीं है । लोगोंने भी भीतिहरवामें पाठशालाका जो छप्पर बांस और घासका बनाया था, किसीने एक रातको उसे जला डाला । शक गया आस-पास के निलहे लोगोंके श्रादमियोंपर | दुबारा घास और बांसका मकान बनाना ठीक न मालूम हुआ । यह पाठशाला श्री सोमण और कस्तूरबाईके जिम्मे थी । श्री सोमणने ईंटका पक्का मकान बनाने का निश्चय किया और वह खुद उसके बनाने में लग गये । दूसरों पर भी उसका रंग चढ़ा और देखते-देखते ईंटोंका मकान खड़ा हो गया और फिर मकानके जलनेका डर न रहा । इस तरह पाठशाला, स्वच्छता, सुधार और दवाके कामोंसे लोगों में स्वयंसेवकों के प्रति विश्वास और आदर बढ़ा और उनके मनपर अच्छा असर हुआ । परंतु मुझे दुःख के साथ कहना पड़ता है कि इस कामको कायम करने की मेरी मुराद बनाई । जो स्वयं सेवक मिले थे वे खास समय तक के लिए मिले थे । दूसरे नये स्वयंसेवक मिलने में कठिनाइयां पेश आईं और बिहारसे इस काम के लिए योग्य स्थायी सेवक न मिल सके। मुझे भी चंपारनका काम खतम होनेके बाद दूसरा काम जो तैयार हो रहा था, घसीट ले गया । इतना होते हुए भी छः मास के कामने इतनी जड़ जमा ली कि एक नहीं तो दूसरे रूपमें उसका असर आजतक कायम है । १६ उज्ज्वल पक्ष एक तरफ तो पिछले अध्याय में वर्णन किये अनुसार समाज सेवा के काम चल रहे थे और दूसरी ओर लोगोंके दुःखकी कथायें लिखते रहनेका काम दिन
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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