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________________ अध्याय १४ : अहिंसादेवीका साक्षात्कार ४१६ कानून की गलियों में निकल भागने की कोशिश । कांग्रेसका अर्थ यहां है बम-गोले और कहना कुछ करना कुछ । ऐसा खयाल कांग्रेसके बारेमें यहां सरकार और सरकारकी सरकार यानी निलहे मालिकोंके मनमें था; परंतु हमें यह साबित करना था कि कांग्रेस ऐसी नहीं, दूसरी ही वस्तु है । इसलिए हमने यह निश्चय किया था कि कहीं भी कांग्रेसका नाम न लिया जाय और लोगोंको कांग्रेसके भौतिक देहका भी परिचय न कराया जाय । हमने सोचा कि वे कांग्रेसके अक्षरको -- नामको न जानते हुए उसकी ग्रात्माको जानें और उसका अनुसरण करें तो बस है । यही वास्तविक बात है । इसलिए कांग्रेसकी तरफसे किसी छिपे या प्रकट दूतोंके द्वारा कोई जमीन तैयार नहीं कराई गई थी; कोई पेशबंदी नहीं की गई थी। राजकुमार शुक्ल में हजारों लोगोंमें प्रवेश करनेकी सामर्थ्य न थी, वहां लोगोंके अंदर किसीने भी आज तक कोई राजनैतिक काम नहीं किया था। चंपारनके सिवा बाहरकी दुनियाको वे जानते ही न थे । . फिर भी उनका और मेरा मिलाप किसी पुराने मित्रके मिलाप - सा था । अतएव यह कहने में मुझे कोई प्रत्युक्ति नहीं मालूम होती, बल्कि यह अक्षरशः सत्य है कि मैंने वहां ईश्वरका, अहिंसाका और सत्यका, साक्षात्कार किया । जब साक्षात्कार-विषयक अपने इस अधिकारपर विचार करता हूं तो मुझे उसमें लोगों के प्रति प्रेमके सिवा दूसरी कोई बात नहीं दिखाई पड़ती और यह प्रेम अथवा हिंसा के प्रति मेरी अचल श्रद्धाके सिवा और कुछ नहीं है । चंपारनका यह दिन मेरे जीवन में ऐसा था, जिसे मैं कभी नहीं भूल सकता । यह मेरे तथा किसानोंके लिए उत्सवका दिन था । मुझपर सरकारी कानून के मुताबिक मुकदमा चलाया जानेवाला था; परंतु सच पूछा जाय तो मुकदमा सरकारपर चल रहा था। कमिश्नरने जो जाल मेरे लिए फैलाया था उसमें उसने सरकारको ही फंसा मारा ।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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