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________________ अध्याय २ : गोखलेके साथ पूनामें ३८१ तो इसमें कोई कठिनाई नहीं आवेगी । इस तरह बंबईमें दो-एक दिन रहकर देसका प्रारंभिक अनुभव ले गोखलेकी आज्ञासे मैं पूना गया । गोखलेके साथ पूनामें मेरे बंबई पहुंचते ही गोखलेने मुझे तुरंत खबर दी कि बंबईके गवर्नर आपसे मिलना चाहते हैं और पूना पानेके पहले आप उनसे मिल आवें तो अच्छा होगा। इसलिए मैं उनसे मिलने गया। मामूली बातचीत होनेके बाद उन्होंने मुझसे कहा-- "आपसे मैं एक वचन लेना चाहता हूं। मैं यह चाहता हूं कि सरकारके संबंधमें यदि आपको कहीं कुछ आंदोलन करना हो तो उसके पहले आप मुझसे ' मिल लें और बातचीत कर लें।" मैंने उत्तर दिया कि यह वचन देना मेरे लिए बहुत सरल है; क्योंकि सत्याग्रहीकी है सियतसे मेरा यह नियम ही है कि किसी के खिलाफ कुछ करने के पहले उसका दृष्टि-बिंदु खुद उसीसे समझ लूं और अपनेसे जहांतक हो सके उसके अनुकूल होनेका यत्न करूं। मैंने हमेशा दक्षिण अफ्रीकामें इस नियमका पालन किया है और यहां भी मैं ऐसा ही करनेका विचार करता हूं। लार्ड विलिंग्डनने इसपर मुझे धन्यवाद दिया और कहा-- "आप जब कभी मिलना चाहें, मुझसे तुरंत मिल सकेंगे और आप देखेंगे कि सरकार जान-बूझकर कोई बुराई करना नहीं चाहती ।" मैंने जवाब दिया-- " इसी विश्वासपर तो मैं जी रहा हूं।" अब मैं पूना पहुंचा। वहांके तमाम संस्मरण लिखना मेरी सामर्थ्यके बाहर है। गोखलेने और भारत-सेवक-समितिके सदस्योंने मुझे प्रेमसे पाग दिया। जहांतक मुझे याद है उन्होंने तमाम सदस्योंको पूना बुलाया था। सबके साथ दिल खोलकर मेरी बातें हुई। गोखलेकी तीव्र इच्छा थी कि मैं भी समितिमें आजाऊं। इधर मेरी तो इच्छा थी ही; परंतु उसके सदस्योंकी यह धारणा हुई
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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