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________________ आत्म-कथा : भाग ५ जिस समय मैं बंबई बंदरपर उतरा तो वहां मुझे खबर हुई कि उन दिनों यह परिवार शांति निकेतनमें था । इसलिए गोखलेसे मिलकर मैं वहां जाने के लिए अधीर हो रहा था । बंबईमें स्वागत-सत्कारके समय ही मुझे एक छोटा-सा सत्याग्रह करना पड़ा था । मि० पेटिटके यहां मेरे निमित्त स्वागत सभा की गई थी। वहां तो स्वागतका उत्तर गुजराती में देनेकी' मेरी हिम्मत न हुई । इस महल में और आंखों को चौंधिया देनेवाले वहांके ठाट-बाटमें, मैं जो गिरमिटियोंके सहवास में रहा था, देहात के एक गंवारकी तरह मालूम होता था । आज जिस तरहकी वेष-भूषा मेरी है, उससे तो उस समयका अंगरखा, साफा इत्यादि अधिक सभ्य पहनावा कहा जा सकता है । फिर भी उस अलंकृत समाज में मैं एक बिलकुल अलग आदमी मालूम होता था; परंतु वहां तो मैंने ज्यों-त्यों करके अपना काम चलाया और फिरोजशाह मेहताकी छायामें जैसे-तैसे प्रश्रय लिया । ऐसे अवसरपर गुजराती लोग भला मुझे क्यों छोड़ने लगे ? स्वर्गीय उत्तमलाल त्रिवेदीने भी एक सभा निमंत्रित की थी। इस सभा के संबंध में कुछ बातें मैंने पहले ही जान ली थीं। गुजराती होनेके कारण मि० जिन्ना भी उसमें आये थे । वह सभापति थे या प्रधान वक्ता थे, यह बात मैं भूल गया हूं। उन्होंने अपना छोटा और मीठा भाषण अंग्रेजी में किया और मुझे ऐसा याद पड़ता है कि और लोगोंके भाषण भी अंग्रेजीमें ही हुए थे; परंतु जब मेरे बोलनेका अवसर आया तब मैंने अपना जवाब गुजराती में ही दिया और गुजराती तथा हिंदुस्तानी भाषा विषयक अपना पक्षपात मैंने वहां थोड़े शब्दोंमें प्रकट किया । इस प्रकार गुजरातियों की सभा में अंग्रेजी भाषा के प्रयोगके प्रति मैंने अपना नम्र विरोध प्रदर्शित किया । ऐसा करते हुए मेरे मनमें संकोच तो बड़ा होता था । बहुत समय तक देस से बाहर रहने के बाद जो शख्स स्वदेशको लौटता है वह, देसकी बातों से अपरिचित आदमी, यदि प्रचलित प्रथाके विपरीत आचरण करे, तो यह प्रविवेक तो न होगा, यह शंका मनमें बराबर आया करती थी; परंतु गुजराती में जो मैंने उतर देनेका साहस किया उसका किसीने उल्टा अर्थ नहीं लगाया और मेरे विरोधको सबने सहन कर लिया, यह देखकर मुझे आनंद हुआ और इस पर से मैंने यह नतीजा निकाला कि मेरे दूसरे, नये-से प्रतीत होनेवाले, विचार भी यदि मैं लोगों के सामने रक्खूं ३८०
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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