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________________ अध्याय ४५ : चालाकी? और बड़े परिश्रमसे तैयार किये इस हिसाबको रद्द करना उन्हें अच्छा न मालूम हुना। विपक्षके वकीलको तो यह विश्वास ही था कि इस भूलके मान लिये जानेपर तो उन्हें बहुत बहस करनेकी जरूरत न रहेगी। परंतु न्यायाधीश ऐसी भूलके लिए, जो स्पष्ट हो गई है और सुधर सकती है, पंचके फैसलेको रद्द करनेके लिए बिलकुल तैयार न थे। विपक्षके वकीलने बहुत माथा-पच्ची की, परंतु जिस जजने शंका उठाई थी वही मेरे हिमायती हो बैठे । ___“मि० गांधीने भूल न कबूल की होती तो आप क्या करते ? " न्यायाधीशने पूछा। ___“जिन हिसाब-विशारदोंको हमने नियुक्त किया उनसे अधिक होशियार या ईमानदार विशेषज्ञोंको हम कहांसे ला सकते हैं ? " " हमें मानना होगा कि आप अपने मुकदमेकी असलियत अच्छी तरह जानते हैं। बड़े-से-बड़े हिसाबके अनुभवी भूल कर सकते हैं। और इस भूल के अलावा यदि कोई दूसरी भूल बता सके तो फिर कानूनकी कमजोर बातोंका सहारा लेकर अदालत दोनों फरीकैनको फिरसे खर्च में डालने के लिए तैयार नहीं हो सकती। और यदि आप कहें कि अदालत ही फिर नये सिरेसे इस मुकदमेकी सुनवाई करे तो यह नहीं हो सकता ।" इस तथा इस तरहकी दूसरी दलीलोंसे वकीलको शांत करके उस भूलको सुधारकर फिर अपना फैसला भेजने का हुक्म पंचके नाम लिखकर न्यायाधीशने उस सुधारे हुए फैसले को कायम रक्खा। इससे मेरे हर्षका पार न रहा। क्या मेरे मवक्किल और क्या बड़े वकील दोनों खुश हुए और मेरी यह धारणा और भी दृढ़ हो गई कि वकालत में भी सत्यका पालन करके सफलता मिल सकती है ।। परंतु पाठक इस बातको न भूलें कि जो वकालत पेशेके तौरपर की जाती है उसकी मूलभूत बुराइयोंको यह सत्यकी रक्षा छिपा नहीं सकती ।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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