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________________ अध्याय २९ : घरमें सत्याग्रह ३३३ किया जाय तो वह बहुत उपयोगी हो सकता है । श्रतएव जेलसे निकलनेके बाद मैंने तुरंत इन बातोंका पालन शुरू कर दिया। जहांतक हो सके चाय पीना बंद कर दिया और शामके पहले भोजन करनेकी बादत डाली, जो आज स्वाभाविक बैठी हैं । परंतु ऐसी भी एक घटना घटी, जिसकी बदौलत मैंने नमक भी छोड़ दिया था । वह क्रम लगभग दस वरसतक नियमित रूपसे जारी रहा । ग्रन्नाहारसंबंधी कुछ पुस्तकोंमें मैंने पढ़ा था कि मनुष्य के लिए नमक खाना श्रावश्यक नहीं हैं। जो नमक नहीं खाता है आरोग्यकी दृष्टिसे उसे लाभ ही होता है और मेरी तो यह भी कल्पना दौड़ गई थी कि ब्रह्मचारीको भी उससे लाभ होगा। जिसका शरीर निर्बल हो उसे दाल न खानी चाहिए, यह मैंने पढ़ा था और अनुभव भी किया था । परंतु मैं उसी समय उन्हें छोड़ न सका था; क्योंकि दोनों चीजें मुझे प्रिय थीं । नश्तर लगानेके बाद यद्यपि कस्तूरवाईका रक्तस्राव कुछ समयके लिए बंद हो गया था, तथापि बादको वह फिर जारी हो गया। अबकी वह किसी तरह मिटाये न मिटा । पानीके इलाज बेकार साबित हुए। मेरे इन उपचारोंपर पत्नी की बहुत श्रद्धा न थी; पर साथ ही तिरस्कार भी न था । दूसरा इलाज करने का भी उसे प्राग्रह न था; इसलिए जब मेरे दूसरे उपचारोंमें सफलता न मिली तब मैंने उसको समझाया कि दाल और नमक छोड़ दो। मैंने उसे समझानेकी हद कर दी, अपनी बातके समर्थनमें कुछ साहित्य भी पढ़कर सुनाया, पर वह नहीं मानती थी । तो उसने झुंझलाकर कहा -- “ दाल और नमक छोड़नेके लिए तो आपसे भी कोई कहे तो आप भी न छोड़ेंगे । " इस जवाबको सुनकर, एक ओर जहां मुझे दुःख हुआा तहां दूसरी ओर हर्ष भी हुआ; क्योंकि इससे मुझे अपने प्रेमका परिचय देनेका अवसर मिला । उस हर्ष से मैंने तुरंत कहा, "तुम्हारा खयाल गलत है, में यदि बीमार होऊं और मुझे यदि वैद्य इन चीजोंको छोड़नेके लिए कहें तो जरूर छोड़ दूं । पर ऐसा क्यों ? लो, तुम्हारे लिए मैं आज हीसे दाल और नमक एक सालतक छोड़े देता हूं । तुम छोड़ो या न छोड़ो, मैंने तो छोड़ दिया । 33 यह देखकर पत्नीको बड़ा पश्चात्ताप हुआ। वह कह उठी- "माफ
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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