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________________ अध्याय १३ : ' इंडियन ओपीनियन ' १३ २८७ 'इंडियन ग्रोपीनियन' अभी और यूरोपियनोंके गाढ़ परिचयका वर्णन करना बाकी है; किंतु उसके पहले दो-तीन जरूरी बातों का उल्लेख कर देना आवश्यक है । एक परिचय तो यहीं देता हूं। अकेली मिस डिकके ही ग्रा जानेसे मेरा काम पूरा नहीं हो सकता था । मि० रीचका जिक्र मैं पहले कर चुका हूं। उसके साथ तो मेरा खासा परिचय था ही । वह एक व्यापारी गद्दी के व्यवस्थापक थे । मैंने उन्हें सुझाया कि वह उस कामको छोड़कर मेरे साथ काम करें। उन्हें यह पसंद हुआ और वह मेरे दफ्तर में काम करने लगे । इससे मेरे कामका बोझ हलका हुआ । इसी अरनेने श्री सदनजीतने इंडियन प्रोपीनियन' नामक अखबार निकालने का इरादा किया। उन्होंने उसमें मेरी सलाह और मदद मांगी। छापाखाना तो उनका पहलेसे ही चल रहा था । इसलिए अखबार निकालने के प्रस्तावसे मैं सहमत हो गया । वस १९०४ में 'इंडियन ग्रोपीनियन' का जन्म हो गया । • मनसुखलाल नागरे उसके संपादक हुए; पर सच पूछिए तो संपादकका असली बोझ मुझपर ही या पड़ा। मेरे नसीब में तो हमेशा प्रायः दूर रहकर ही पत्रसंचालनका काम रहा है । पर यह बात नहीं कि मनसुखलाल नाजर संपादनका काम नहीं कर सकते थे। वह देसके कितने ही अखवारोंमें लिखा करते थे; परंतु दक्षिण अफ्रीकाके अटपटे प्रश्नोंपर मेरे मौजूद रहते हुए स्वतंत्र रूप से लेख लिखने की हिम्मत उन्हें न हुई | मेरी विवेकशीलता पर उनका प्रतिशय विश्वास था । इसलिए जिन-जिन विषयोंपर लिखना आवश्यक होता उनपर लेखादि लिखने का बोझ वह मुझपर रख देते । 'इंडियन ग्रोपीनियन' साप्ताहिक था और आज भी है । पहले-पहलबह गुजराती, हिंदी, तमिल और अंग्रेजी इन चार भाषाओं में निकलता था परंतु मैंने देखा कि तमिल और हिंदी विभाग नाम मात्र के लिए थे। मैंने यह भी
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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