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________________ अध्याय ३ : जहरकी घूंट पीनी पड़ी २५९ it 'कहिए. ग्राप यहां किस गरजसे ग्राये हैं ? " साहबने मेरी ओर प्रांख उठाकर पूछा । " मेरे इन भाइयोंके बुलानेसे, इन्हें सलाह देने के लिए आया हूं।" मैंने उत्तर दिया । 64 ' पर आप जानते नहीं कि आपको यहां आनेका कतई हक नहीं है ? आपको जो परवाना मिला है वह तो भूलसे दे दिया गया है । आप यहांके बाशिंदा तो हैं नहीं । आपको वापस लौट जाना पड़ेगा । श्राप मि० चैवरलेनसे नहीं मिल सकते | यहांके हिंदुस्तानियोंकी हिफाजतके ही लिए तो हमारा यह महकमा खास तौरपर खोला गया है। अच्छा तो, ग्राप जाइए । " इतना कहकर साहब ने मुझे बिदा किया । और तो ठीक; पर मुझे जवावतक देनेका अवसर न दिया । पर मेरे साथियोंको उन्होंने रोक रक्खा और धमकाया। कहा कि गांधीको ट्रांसवालसे विदा कर दो । वे सब अपना-सा मुंह लेकर वापस आये । अब मेरे सामने एक नई समस्या खड़ी हो गई और सो भी इस तरह अचानक ! ३ जहर की घूंट पीनी पड़ी इस अपमानसे मेरे दिलको बड़ी चोट पहुंची; पर इससे पहले मैं ऐसे अपमान सहन कर चुका था; सो उसका कुछ यादी हो रहा था । अतएव इस अपमान की परवा न करके तटस्थ भावसे जो कुछ कर्त्तव्य दिखाई पड़े उसे करनेका निश्चय मैंने किया। इसके बाद पूर्वोक्त अफसरकी सही से एक चिट्ठी मिली कि डरबनमें मि० चेंबरलेन गांधीजी से मिल चुके हैं, इसलिए ग्रव इनका नाम प्रतिनिधियों से निकाल डालना जरूरी है । मेरे साथियोंको यह चिट्ठी बड़ी ही नागवार लगी । उन्होंने कहा"तो ऐसी हालत में हमें शिष्ट मंडल ले जानेकी भी जरूरत नहीं ।" तब मैंने उन्हें यहांके लोगोंकी विषम अवस्थाका भली प्रकार परिचय कराया --
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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