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________________ अध्याय २ : एशियाई नवाबशाही ११ २५७ २ एशियाई नवाबशाही इस नये महकमेके कर्मचारी यह न समझ सके कि मैं ट्रांसवालमें किस तरह आ पहुंचा। जो हिंदुस्तानी उसके पास श्राते-जाते रहते थे उनसे उन्होंने पूछ-ताछ भी की; पर वे बेचारे क्या जानते थे ? तव कर्मचारियोंने अनुमान लगाया कि हो न हो अपनी पुरानी जान-पहचान की वजहसे में बिना परवाना लिये ही घुसा हूं; और यदि ऐसा ही हो तो, उन्होंने सोचा, इसे हम कैद भी कर सकते हैं । जब कोई भारी लड़ाई लड़ी जाती है तब उसके बाद कुछ समय के लिए राज- कर्मचारियोंको विशेष अधिकार दिये जाते हैं। यहां दक्षिण अफ्रीका में भी ऐसा ही हुआ था। शांति रक्षा के लिए एक कानून बनाया गया था । इसमें एक धारा यह भी थी कि यदि कोई बिना परवानेके ट्रांसवालमें श्रा जाय तो वह गिरफ्तार और कैद किया जा सकता है। इस धारा के अनुसार मुझे गिरफ्तार करनेके लिए सलाह-मशविरा होने लगा पर किसीको यह साहस न हुआ कि आकर मुझसे परवाना मांगे । इन कर्मचारियोंने डरबन तार भेजकर भी पुछवाया था। वहांसे जब उन्हें खबर पड़ी कि मैं तो परवाना लेकर अंदर प्राया हूं तब बेचारे निराश हो रहे; परंतु इस महकमेके लोग ऐसे न थे जो इस निराशासे थककर बैठ जाते । हालांकि मैं ट्रांसवाल में या चुका था; परंतु फिर भी उनके पास ऐसी तरकीबें थीं जिनसे मेरा मि० चेंबरलेनसे मिलना जरूर रोक सकते थे । इस कारण सबसे पहले शिष्टमंडलके प्रतिनिधियोंके नाम मांगे गये । यों तो दक्षिण अकीकामें रंग-द्वेषका अनुभव जहां जाते वहीं हो रहा था; पर यहां तो हिंदुस्तानकी जैसी गंदगी और खटपटकी बदबू आने लगी । दक्षिण श्रीकामें ग्राम महकमोंका काम लोक-हितके खयालसे चलाया जाता है । इससे राज कर्मचारियोंके व्यवहारमें एक प्रकारकी सरलता और नम्रता दिखाई पड़ती थी । इसका लाभ, थोड़े-बहुत अंशमें, काली-पीली चमड़ीवालोंको भी
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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