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________________ चौथा भाग किया-कराया वाहा ? मिस्टर चेंबरलेन तो दक्षिण अफ्रीकासे साढ़े तीन करोड़ पौंड लेनेके लिए तथा अंग्रेजोंका, और हो सके तो बोअरोंका भी मनहरण करनेके लिए आये थे। इसलिए हिंदुस्तानी प्रतिनिधियोंको उनकी अोरसे यह ठंडा जवाब मिला ___“आप तो जानते ही हैं कि उत्तरदायित्व-पूर्ण उपनिवेशोंपर साम्राज्यसरकारकी सत्ता नाममात्र की है। हां, आपकी शिकायतें अलबत्ता सच मालूम होती हैं, सो मैं अपने बस-भर उनको दूर करनेकी चेष्टा करूंगा; पर आप एक बात न भूलें। जिस तरह हो सके आपको यहांके गोरोंको राजी रखकर ही रहना है।" इस जवाबको सुनकर प्रतिनिधियोंपर तो मानो पानी पड़ गया। मैंने भी आशा छोड़ दी। मैंने तो इसका तात्पर्य समझ लिया कि अब फिर से 'हरिः ॐ' करना पड़ेगा। और मैंने अपने साथियोंपर भी यह बात अच्छी तरह स्पष्ट कर दी; पर मि० चैंबरलेनका जवाब क्या झूठा था ? गोल-मोल कहने के बदले उन्होंने खरी बात कह दी। 'जिसकी लाठी उसकी भैंस' का नियम उन्होंने कुछ मधुर शब्दोंमें बता दिया, पर हमारे पास तो लाठी ही कहां थी ? लाठी तो दूर, लाठीकी चोट सहनेवाले शरीर भी मुश्किलसे हमारे पास थे । मि० चैबरलेन कुछ ही सप्ताह वहां रहनेवाले थे। दक्षिण अफ्रीका कोई छोटा-सा प्रांत नहीं, उसे तो एक देश, एक भूखंड ही कहना चाहिए । अफ्रीकाके पेटमें तो कितने ही उपखंड पड़े हुए हैं। कन्याकुमारीसे श्रीनगर यदि १९०० मील है तो डरबनसे केपटाउन ११०० मीलसे कम नहीं। इस इतने बड़े खंडमें उन्हें 'पचन-वेग'से घूमना था। वह ट्रांसवाल रवाना हुए। मुझे सारी तैयारी करके भारतीयोंका पक्ष उनके सामने उपस्थित करना था। अब यह समस्या
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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