SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 239
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ अध्याय ११ : नगर-सुधार : अकाल-फंड २१६ घर-घर जाकर प्रचार करनेका काम तो तभी शुरू हो पाया, जब डरबनम प्लेगके प्रवेश और प्रकोपका भय उत्पन्न हुआ। इसमें म्यूनिसिपैलिटीके अधिकारियोंका भाग था और उनकी सम्मति भी थी। हमारी मददसे उनका काम आसान हो गया और हिंदुस्तानियोंको कम कष्ट और असुविधा हुई; क्योंकि प्लेग इत्यादिका प्रकोप जब कभी होता है तब आम तौरपर अधिकारी लोग अधीर हो जाते हैं और उसका उपाय करनेमें सीमाके आगे बढ़ जाते हैं, एवं जो लोग उनकी नजरोंमें अप्रिय होते हैं, उनपर इतना दबाव डाला जाता है कि वह असह्य हो जाता है। चूंकि लोगोंने खुद ही काफी इलाज करनेका आयोजन कर लिया था, इसलिए वे इस सख्ती और ज्यादतीसे बच गये । इस संबंधमें मुझे कितने ही कडुए अनुभव भी हुए। मैंने देखा कि स्थानीय सरकारसे अपने हकोंका मतालबा करने में अपने लोगोंसे में जितनी सहायता ले सकता था, उतनी आसानीसे मैं उनसे स्वयं अपने कर्तव्योंका पालन करने में न ले सका। कितनी ही जगह अपमान होता, कितनी जगह विनयपूर्वक लापरवाही बताई जाती। गंदगी दूर करनेका कष्ट उठाना एक आफत मालूम होती थी और इसके लिए पैसा खर्च करना तो और भी मुश्किल पड़ता था। इससे मैंने यह पाठ और अधिक अच्छी तरह सीखा कि यदि लोगोंसे कुछ भी काम कराना हो तो हमें धीरज रखना चाहिए। सुधारकी गरज तो होती है खुद सुधारकको, जिस समाजमें वह सुधार चाहता है, उससे तो उसे विरोधकी, तिरस्कारकी और जानकी भी जोखिमकी ही आशा रखनी चाहिए। सुधारक जिस बातको सुधार समझता है, समाज उसे 'कुंधार' क्यों न माने ? और यदि सुधार न भी माने तो उसकी तरफसे उदासीन क्यों न रहे ? . इस आंदोलनका परिणाम यह हुआ कि भारतीय समाजमें घरबार स्वच्छ रखने की आवश्यकता थोड़ी-बहुत मात्रामें मान ली गई । राज्याधिकारियोंके नजदीक मेरी साख बढ़ी। वे समझे कि मैं महज शिकायतें करनेवाला अथवा हक मांगनेवाला ही नहीं हूं; बल्कि इन बातोंमें मैं जितना दृढ़ हूं उतना ही उत्साही आंतरिक सुधारोंके लिए भी हूं। परंतु समाजकी मनोवृत्तिका विकास अभी एक और दिशामें होना बाकी था। यहांके भारतीयोंको अभी प्रसंगोपात्त भारतवर्षके प्रति अपने धर्मको समझना
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy