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आत्म-कथा : भाग २
दाम इंडिया कांग्रेस में यद्यपि उपनिवेशोंमें जन्मे भारतीयोंने प्रवेश किया था, कारकून लोग शरीक हुए थे, फिर भी उसमें अभी मजूर गिरमिटिया लोग सम्मिलित न हुए थे। कांग्रेस अभी उनकी न हुई थी। वे चंदा देकर, उसके सदस्य होकर, उसे अपना न सके थे। कांग्रेसके प्रति उनका प्रेम पैदा तभी हो सकता था, जब कांग्रेस उनकी सेवा करे। ऐसा अवसर अपने-आप आ गया, और मो भी ऐसे समय, जबकि खुद मैं अथवा कांग्रेस उसके लिए मुश्किलसे तैयार थी; क्योंकि अभी मुझे वकालत शुरू किये दो-चार महीने भी मुश्किलसे हुए होंगे। कांग्रेस भी बाल्यावस्था में हो थी। इन्हीं दिनों एक दिन एक मदरासी हाथमें फेंटा रखकर रोताहना मेरे सामने आकर खड़ा हो गया। कपडे उसके फटे-पुराने थे। उसका शरीर कांप रहा था। सामने के दो दांत टूटे हुए थे और मुंहसे खून बह रहा था । उसके मालिकने उसे बेदर्दीये पीटा था। मैंने अपने मुंशीसे जो तामिल जानता था, उसकी हालत पुछदाई । बालासुन्दरम् एक प्रतिष्ठित गोरेके यहां मजूरी करता था। मालिक किसी बातपर उसपर बिगड़ पड़ा और आग-बबूला होकर उसे बुरी तरह उसने पीट डाला, जिससे बालामुन्दरम के दो दांत टूट गये ।
___ मैंने उसे डाक्टरके यहां भेजा। उस समय गोरे डाक्टर ही वहां थे। मुझे चोट-संबंधी प्रमाण-पत्रकी जरूरत थी। उसे लेकर मैं बालासुंदरम्को अदालतमें ले गया। बालासुंदरम्ने अपना हलफिया बयान लिखवाया। पढ़कर मजिस्ट्रेटको मालिकपर बड़ा गुस्सा आया। उसने मालिकको तलव करनेका हुक्म दिया।
मेरी इच्छा यह न थी कि मालिकको सजा हो जाय । मुझे तो सिर्फ बालासुंदरमको उसके यहांसे छुड़वाना था। मैंने गिरमिट-संबंधी कानूनको अच्छी तरह देख लिया। मामूली नौकर यदि नौकरी छोड़ दे तो मालिक उसपर दीवानी दावा कर सकता है, फौजदारीमें नहीं ले जा सकता। गिरमिट और मामूली नौकरोंमें यों बड़ा फर्क था; पर उसमें मुख्य बात यह थी कि गिरमिटिया यदि मालिकको छोड़ दे तो वह फौजदारी जुर्म समझा जाता था और इसलिए उसे कैद भोगनी पड़ती। इसी कारण सर विलियम विलसन हंटरने इस हालतको 'गुलामी '-जैसा बताया है। गुलामकी तरह गिरमिटिया मालिककी संपत्ति समझा जाता। बालासुंदरम्को मालिकके चंगलसे छुड़ानेके दो ही उपाय थेया तो गिरमिटियोंका अफसर, जो कानूनके अनुसार उनका रक्षक समझा जाता