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________________ अध्याय १७ : बस गया १४५ माणेकजी, जोशी, नरसीराम इत्यादि । दादा अब्दुल्लाकी तथा दूसरी बड़ी दूकानोंके कर्मचारी थे। पहले-पहल सार्वजनिक काममें पड़ते हुए इन लोगोंको जरा अटपटा मालूम हुआ। इस तरह सार्वजनिक काममें निमंत्रित तथा सम्मिलित होनेका उन्हें यह पहला अनुभव था। सिर आई विपत्तिके मुकाबलेके लिए नीच-ऊंच, छोटे-बड़े, मालिक-नौकर, हिंदू-मुसलमान, पारसी, ईसाई, गुजराती, मदरासी, सिंधी इत्यादि भेद-भाव जाते रहे। उस समय सब भारतकी संतान और सेवक थे । ____ चाइज बिलका दूसरा वाचन हो चुका था अथवा होनेवाला था। उस समय धारा-सभामें जो भाषण हुए, उनमें यह बात कही गई कि कानून इतना सख्त था, फिर भी हिंदुस्तानियोंकी ओरसे उनका कुछ विरोध न हुआ । यह भारतीय प्रजाकी लापरवाही और मताधिकार-संबंधी उनकी अपात्रताका प्रमाण था। ___मैंने सभाको सारी हकीकत समझा दी। पहला काम तो यह हुआ कि धारा-सभाके अध्यक्षको तार दिया कि वह बिलपर आगे विचार करना स्थगित कर दें। ऐसा ही तार मुख्य प्रधान सर जान राबिंसनको भी भेजा, तथा एक और तार दादा अब्दुल्लाके मित्र के नाते मि० एस्कंबको गया। तारका जवाब मिला कि विलकी चर्चा दो दिनतक स्थगित रहेगी। इससे सब लोगोंको खुशी हुई। अब दरख्वास्तका मसविदा तैयार हुआ । उसकी तीन प्रतियां भेजी जानेवाली थी। अखबारोंके लिए भी एक प्रति तैयार करनी थी। उसपर जितनी अधिक सहियां ली जा सकें, लेनी थीं। यह सब काम एक रातमें पूरा करना था। वे शिक्षित स्वयंसेवक तथा दूसरे लोग लगभग सारी रात जगे। उनमें एक मि० आर्थर थे, जो बहुत बूढ़े थे और जिनका खत अच्छा था। उन्होंने सुंदर हरफोंमें दरख्वास्तकी नकल की । औरोंने उसकी और नकलें कीं। एक बोलता जाता और पांच लिखते जाते। इस तरह पांच नकलें एक साथ हो गईं। व्यापारी स्वयंसेवक अपनी-अपनी गाड़ियां लेकर या अपने खर्चेसे गाड़ियां किराया करके सहियां देने दौड़ पड़े। . दरख्वास्त गई । अखबारों में छपी। उसपर अनुकूल टिप्पणियां निकलीं। धारा-सभापर भी उसका असर हुआ । उसकी चर्चा भी खूब हुई। दरख्वास्त में जो दलीलें पेश की गई थीं, उनपर आपत्तियां जाई गई परंतु खुद उठानेवालों
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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