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________________ आत्म-कथा: भाग २ नहीं जानता। कानूनकी पुस्तकें देखनी होंगी; फिर ऐसे काम अकेले हाथों नहीं हो सकते। कई लोगोंके सहयोगकी जरूरत होगी।" बहुत-सी आवाज एक-साथ सुनाई दी----"खुदाकी मेहर है। रुपयेपैसेकी फिक्र मत कीजिए। आदमी भी मिल जायंगे। आप सिर्फ ठहरना मंजूर करें तो बस है।" फिर क्या था वह जलसा कार्यकारिणी समितिके रूपमें परिणत हो गया। मैंने सुझाया कि खा-पीकर जल्दी फारिग होकर हम लोग घर पहुंचे। मैंने मनमें लड़ाईकी रूप-रेखा बांधी। यह जान लिया कि मताधिकार कितने लोगोंको है। मैंने एक मास व्हर जानेका निश्चय किया। इस प्रकार ईश्वरने दक्षिण अफ्रीकामें मेरे स्थायी रूपसे रहनेकी नींव डाली और आत्म-सम्मानके संग्रामका बीजारोपण हुआ । १७ बस गया १८९३ ईस्वीम सेठ हाजी मुहम्मद हाजी दादा नेटालकी भारतीय जातिके अग्रगण्य नेता माने जाते थे। सांपत्तिक स्थितिमें सेठ अब्दुल्ला हाजी आदि मुख्य थे; परंतु वह तथा दूसरे लोग भी सार्वजनिक कामोंमें सेठ हाजी मुहम्मदको ही प्रथम स्थान देते थे। इसलिए उनकी अध्यक्षतामें, अब्दुल्ला सेठके मकानमें, एक सभा की गई। उसमें फ्रैंचाइज बिलका विरोध करनेका प्रस्ताव स्वीकृत हुआ । स्वयंसेवकोंकी सूची भी बनी। इस सभामें नेटालमें जन्मे हिंदुस्तानी, अर्थात ईसाई नवयुवक भी बुलाये गये थे। मि० पॉल इरबनकी अदालतके दुभाषिया थे। मि० सुभान गाडफ्रे मिशन स्कूलके हेडमास्टर थे। वे भी सभामें उपस्थित हुए थे; और उनके प्रभावसे ईसाई नवयुवक अच्छी संख्यामें आये थे। इन सब लोगोंने स्वयंसेवकोंमें अपना नाम लिखाया। सभामें व्यापारी भी बहुतेरे थे। उनमें जानने योग्य नाम ये हैं--सेठदाऊद मुहम्मद कासिम कमरुद्दीन, सेठ अादमजी मियां खान, ए० कोलंदावेल्लू पिल्ले, सी० लछीराम, रंगस्वामी पड़ियाची, आमद जीवा इत्यादि । पारसी रुस्तमजी तो थे ही। कारकुन लोगोंमें पारसी
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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