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________________ अध्याय ५ : दक्षिण अफ्रीकाकी तैयारी उस समय सर फीरोजशाह मेहता अपने किसी मुकदमे में राजकोट आये थे। मुझ-जैसा नया बैरिस्टर भला उनसे कैसे मिल सकता था ? जिस वकीलकी मार्फत वह आये थे उनके द्वारा कागज-पत्र भेजकर सलाह ली। उत्तर मिला कि गांधीसे कहना--' ऐसी बातें तो तमाम वकील-बैरिस्टरोंके अनुभवमें आई होंगी। तुम अभी नये आये हो। तुमपर अभी विलायतकी हवा का असर है, तुम ब्रिटिश अधिकारीको पहचानते नहीं। यदि तुम चाहते हो कि सुबसे बैठकर दो मैंने क.. लें तो उस चिट्ठीको फाड़ डालो और अपमानकी यह चूंट पी लो नाला चलाने में तुम्हें एक कौड़ी न मिलेगी और मुफ्तमें वरवादी हाथ आयेगी। जिंदगीका अनुभव तो तुम्हें अभी मिलना बाकी है।' मुझे यह नसीहत जहरकी तरह कड़वी लगी। परंतु इस कड़वी बूंटको पीये बिना चारा न था। मैं इस अपमान को भूल तो न सका; पर मैने उसका सदूपयोग किया--'अबसे मैं अपनेको ऐसी हालतमें न डालूंगा। इस तरह किसीकी सिफारिश मागे न करूंगा।' इस नियमका भंग मैने फिर कभी न किया। इस आघातने मेरे जीवनकी दिशा बदल दी। दक्षिण अफ्रीकाकी तैयारी पोलिटिकल एजेंटके पास मेरा जाना अवश्य अनुचित था; परंतु उसकी अधीरता, उसका रोष, उसकी उद्धतताके सामने मेरा दोष बहुत छोटा हो गया। मेरे दोषकी सजा धक्का दिलाना न थी। मैं उसके पास पांच मिनट भी न बैठा होऊंगा। पर मेरा तो वात-चीत करना ही उसे नागवार हो गया। वह मुझे सौजन्यके साथ जाने के लिए कह सकता था, परंतु हुकूमतके नशेकी सीमा न थी। बादको मुझ मालूम हुआ कि धीरज जैसी किसी चीजको यह शख्स जानता न था। मिलने जानेवालेका अपमान करना उनके लिए मामूली बात थी। जहां उसकी रुचिके खिलाफ कोई बात हुई कि फौरन उसका मिजाज बिगड़ जाता । मेरा ज्यादातर काम उसीकी अदालतमें था । इधर खुशामद मुझसे हो नहीं सकती थी। और उसे नाजायज तरीकेसे खुश करना मैं चाहता न था।
SR No.100001
Book TitleAtmakatha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMohandas Karamchand Gandhi, Gandhiji
PublisherSasta Sahitya Mandal Delhi
Publication Year1948
Total Pages518
LanguageHindi
ClassificationInterfaith & Interfaith
File Size70 MB
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