________________
: १२ :
क्योंकि जिसे मैं सोलहों माने विश्वासके साथ अपने श्वासोच्छ्वासका स्वामी मानता हूं, जिसे मैं अपने नमकका देने वाला मानता हूं, उससे में अभी तक दूर हूं और यह बात मुझे प्रतिक्षण कांटेकी तरह चुभ रही है। इसके कारण - रूप अपने विकारोंको मैं देख तो सकता हूं; पर श्रव भी उन्हें निर्मूल नहीं कर पाया हूं ।
पर अब इसे समाप्त करता हूं । प्रस्तावनासे हटकर यहां प्रयोगों की कथा में प्रवेश नहीं कर सकता । यह तो कथा प्रकरणोंमें ही पाठकको मिलेगी ।
- मोहनदास करमचन्द गांधी
सत्याग्रहाश्रम, साबरमती, मार्गशीर्ष शुक्ला ११, १६८२.